शुक्रवार, 5 जून 2009

तारीख पर तारीख


भारत में न्यायपालिका में लंबित पडे मामले आज बडी चिंता का विशय है। सस्ता, सुलभ और त्वरित न्याय का
सिद्धान्त आज दूर की कौडी नजर आ रहा है। न्याय पाने में लोगों को सालों इन्तजार करना पडता है। भारत में लिम्बत पडे मुकदमें के आंकडे भी दंग करने वाले है। निचली अदालतें में 3 करोड़ से ज्यादा मामले लंबित है। जबकि उच्च न्यायालयों में इसकी संख्या 30 लाख से उपर है। उच्चतम न्यायालयों में हजारों की तदाद में मामले न्याय की राह बटोर रहे है। अब सवाल उठता की की यह समस्या आज इतनी विकराल क्यों बन गई। दरअसल आजादी के बाद सियासतदानों ने इस मसले केा गंभीरता से लिया ही नही। इसके पिछे कई पहलू है। मसलन न्यायालयों में जजों के रिक्त पदों की संख्या को समय से क्यों नही भरा जाता । क्यों बडती जनसंख्या के आधार पर जजों की पद नही बड़ाये जाते। ढॉंचागत सुविधाओं की कमी पर क्यों ध्यान नही दिया गया। मगर इन सब के बीच वह सब हुआ जिसने न्यायालयों में मुकदमों की संख्या बडाई। संसद और राज्य विधानसभाओं ने कई नए कानून बनाए। मगर न्यायपालिका पर इसका क्या इसर पडेगा इसकी सुध किसी ने नही ली। न ही इसके अध्यन के लिए कोई कमिटि बैठी। लॉ कमिशन ने अपनी सिफारिशों में जजों की संख्या बडाने के साथ मूलभूत सुविधाओं उपलब्ध कराने पर खास जोर दिया। ऐसा ही कुछ सिफारिश विधि मंत्रालय की स्थाई समिति ने कहा। जजेस इन्क्वारी बिल भी लटका पडा है। मगर सरकार इस बार न्यायिक सुधार के प्रति संजीदा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदशीZता लाने की बात कह चुके है। इवनिंग कोर्ट का मॉडल गुजरात में सफल रहा। अब इसे बाकी राज्यों में लागू करना बाकी है। फास्ट ट्रैक कोर्ट और मोबाइल कोर्ट जैसे विकल्प भी सामने है। इस हॉ इस दौरान इतन जरूर हुआ की न्यायपालिका में व्याप्त भ्रश्ट्राचार में नकेल लगाने की कोशिश शुरू हो गई है।
कुछ सिफारिशें सरकार के पास मौजूद है। जिसमें प्रमुख है ।
सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 25 से बढाकर 30 करना।
लॉ कमिशन की सिफारिश 10 लाख की आबादी पर हो 50 न्यायाधीश।
मुख्य न्यायाधीश ने की भ्रश्ट्रचार से जुडे मामले को निपटाने के लिए विशेश अदालत खोलने का उपाय।
मुकदमें को निपटाने की समय सीमा तय हो।
अमेरिका मे प्रति 10 लाख जनसंख्या में 110 जज है। पश्चिमी दशों में यह अनुपात 135 से 150 है।
आज बात दरवाजे में ही न्याय देने ही कही जा रही है। अब बिना इंतजार के इन सिफरिशों को सरकार जमीन पर लागू करे।
गहरा जाता है अंधेरा, हर राज निगल जाती एक सुनहरा सवेरा।
फिर भी सृजन पर मुझे विश्वास है, एक नई सुबह की मुझे तलाश है।

5 टिप्‍पणियां:

  1. सही कह रहे हैँ मै भी एक़ इंसान को जानती हूँ ज़ॉ पिछले 20 साल से न्याय का इंतजार कर रहा है उसके बच्चे गोदी मे खेलते थे और अब वह नौकरी करने लगेगी हैँ

    जवाब देंहटाएं
  2. केन्द्र सरकार गंभीर दिखाई देती है, पर है इस में संदेह है। लॉ कमीशन की सिफारिश 10 लाख पर 50 जज बरसों से धूल खा रही है। राज्य सरकारें अफीम पिए पड़ी हैं। फिर भी आप ने इस पर लिखा उस के लिए धन्यवाद! कुंभकर्ण को जगाने के लिए इस अभियान को आगे बढ़ाने की जरूरत है।

    जवाब देंहटाएं
  3. अमाँ छोड़ो भी, सब बहकाने वाली बातें हैं। ज़बानी जमा खर्च।

    मित्र, 'ष' की जगह 'श' का प्रयोग अखरता है। ध्यान दीजिए न।

    जवाब देंहटाएं
  4. jab tak procedure code men badlav nanhi aayega khuch bhi nanhi hoskata ,do apeal ke bad ka rasta band ona chahiye
    kya vakil raji honge
    judgeo ki sankya se khuch nanhi hosakta
    bahut jaldi justice mafia filmo ki den se aane vala he

    जवाब देंहटाएं