शनिवार, 11 दिसंबर 2010

उवर्रक क्षेत्र में निवेश

4 सितम्बर 2008 को सरकार ने उवर्रक क्षेत्र के लिए एक नई निवेश नीति की घोशणा की । इसका मकसद उवर्रक क्षेत्र में निवेश को आकिशZत करना था। यह नीति समता मूल्य बैंच अंकन पर आधारित है। इसके अलावा सरकार बन्द पडी  उर्वरक इकाइयों को खोलने पर भी विचार कर रही है। इसके लिए सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह का गठन किया गया। जिसकी सिफारिशें सरकार के पास मौजूद है। मौजूदा समय में एचएफसीएल यानि हिन्दुस्तान फर्टीलाइजर कार्पोरेशन लिमिटेड और एफसीआइएल यानि फर्टीलाइजर कार्पोरेशन आफ इण्डिया लिमिटेड की 8 इकाइयां बन्द पड़ी है। इसके लिए विशेष अधिकार प्राप्त समूह ने बनाओं, मालिक बनो तथा चलाओं प्रणाली की सिफारिश की है। देश के सभी भागों में उर्वरकों की उपलब्धता कराने की जिम्मेदारी सरकार की होती है। मौजूदा समय में उवर्रक की 56 इकाइयां है। इनमें से सार्वजनिक क्षेत्र की 8 और निजि क्षेत्र की 2 इकाइयां बन्द है। अगर इन्हे दोबारा खोला जाता है तो यूरिया की मांग और आपूर्ति में बड़ते अन्तर को यह काफी हद तक कम कर देगी। भारत में उवर्रकों की खपत में भारी बढोत्तरी हुई है। जहां 1951-52 में .49 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उवर्रकों का इस्तेमाल होता था वही आज प्रति हेक्टेयर 117.07 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल होता है वही चीन में 289.1. किलोग्राम प्रतिइहेक्टेयर, इजिप्ट में 555.10 और बग्लादेश में 197.6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल होता है।  इससे भी बड़ी बात कि बड़ती खपत के चलते उवर्रकों की सिब्सडी में 6 फीसदी की बढोत्तरी हुई है। 94 फीसदी की बढ़त का कारण अन्तराष्ट्रीय बाजार में उवर्रकों की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी है। जहां 2001 से 2008 के बीच में खाद्यान्न उत्पादन में 8.37 फीसदी की बढोत्तरी हुई उत्पादकता के मामले में 6.92 प्रतिशत की वृद्धि हुई वहीं सिब्सडी का बिल 214 प्रतिशत तक पहुंच गया। अकेले 2007-09 के दरमियान सिब्सडी बिल 146.56 फीसदी तक बड़ गया। इतना ही नही इस क्षेत्र में 2002 के बाद कोई निवेश नहीं हुआ। नाइट्रोजन के क्षेत्र में 1999 से कोई निवेश नही तो फौस्फेट के क्षेत्र में 2002 कोई नया निवेश नही किया गया। साथ ही खेतों की उर्वरा शक्ति लगातार कम होती जा रही है। वैज्ञानिक इसकी वजह उवर्रकों के असन्तुलित इस्तेमाल को मानते हैं। एनपीके का आदशZ अनुपात 4:2:1 है मगर भारत में यह 6:2:1 के के अनुपात में इस्तेमाल होता हैं। खेती में उवर्रको से उत्पादन होने वाले आनाज की मात्रा में भी बदलाव देखने को मिला है। 1960-61 में 13.45 से 2008 में घटकर 3.92 प्रतिशत पर आ गया है। रंगराजन समिति ने अपनी एक सिफारिश में कहा है कि 117 किलो उवर्रक सिब्सडी में दिया जाए बाकी किसान बाजार से खरीदे। इसके पिछे का तर्क है कि 81 फीसदी किसान छोटा और मझोला है।

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