शुक्रवार, 14 मार्च 2014

बगावत

राजनीतिक दलों में बगावत शुरू हो गई है। कोई पार्टी इससे अछूती नही रही। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री
किरण कुमार रेडडी ने तो बकायदा अपनी अलग पार्टी बना ली है। जगदंबिका पाल जैसे नेता, पार्टी में वरिष्ठों की अनदेखी का आरोप लगा रहें है। सबसे बड़ा झटका तो भिंड में कांग्रेस के प्रत्याशी भगीरथ प्रयास ने दिया।
टिकट मिलने के बावजूद बीजेपी का दामन थाम लिया। कई बड़े नेता मसलन चिंदबरम और जयंती नटराजन
चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है। उत्तराखंड के बड़े नेता सतपाल महाराज पार्टी छोड़ने की धमकी दे रहें है।
जिन चेहरों को मसलन मोहम्मद कैफ, नगमा को टिकट दिया है उनका क्षेत्र के कार्यकर्ता विरोध कर रहें हैं।
विरोध केवल कांग्रेस में ही नही बीजेपी में भी खुलकर दिख रहा है। सुषमा, श्रीरामलू के खिलाफ थी बावजूद इसके उनको टिकट दिया गया। बिहार से गिरीराज सिंह दुखी है, बेगूसराय से टिकट चाहते थे, मगर नवादा से मिला। कुछ इसी तरह की नाराजगी अश्वनी चैबे की है। टिकट चाहते थे मगर नही मिला। शहनवाज़ को खरी खोटी सुनाकर दिल हलका कर रहें है। शायद सोच रहें होगे की जो रामकृपाल कल शामिल हुए उनको उनकी पसंदीदा सीट दे दी, और जो नमों नमों कहते थकते नही, उनको खाली हाथ रखा। बीजेपी में मचे घमासन के चलते मोदी और राजनाथ कहां से लड़ेगे, बीजेपी यह भी तय नही कर पा रही है। लगता है की मोदी को गुजरात से ही चुनाव लड़ना होगा। मगर फिलहाल पार्टी में मोदी का सिक्का चल नहा है। इससे बड़े नेता नाराज़ है बस
सह रहें हैं। आरएसएस कह चुका है वह नमो नमो नही करने वाला। आडवाणी पहले से ही नाराज़ है। नये नाम सुषमा और मुरलीमनोहर जोशी के हैं। अब तो मोदी के लिए पलक पांवड़े बिछाने वाले बाबा रामदेव अपने मुददों पर शपथ पत्र मांग रहें है। अगर नही मिला दो दूसरी पार्टी बनाने का विकल्प खुला रखने की बात कर रहें हैं। शिवसेना एमएनएस को लेकर बीजेपी को खरी खोटी सुना रही है। ऐसे में देश के दो बड़े दलों के बीच टिकट
को लेकर घमासान मचा है जिसके आगे भी जारी रहने की उम्मीद है। नई नवेली पार्टी आप में दो टिकटों को लेकर कोहराम मचा है। नए चेहरों पर दावं लगाने से कार्यकर्ता अपने आप को ठगा महसूस कर रहें हैं आशुतोष औरडा आनंद कुमार को टिकट क्यों दिया, इसको लेकर सवाल कर रहें हैं? शाजिया इल्मी भी दुखी है दिल्ली से लड़ना चाहती है पार्टी रायबरेली से चुनावी घंटी बांधना चाहती है। वो तैयार नही। केजरीवाल के तौर तरीकों को भी  कार्यकर्ता पसंद नही कर रहें। यानि सब का हाल खराब है। ये राजनीतिक दल देश को बदलने की बात कर रहें है।मगर पार्टी संभाल नही पा रहें है। देश संभालने का दंभ भर रहें हैं। 

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