शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

भारत अफगान रिश्ता?

भारत चाहता है स्थिर अफगानिस्तान
1.3 बिलियन डालर की विकास सहायता
ऊर्जा और ढांचागत निर्माण में भारत का योगदान
स्वास्थ्य और शिक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान
3749 भारतीय कर रहे हैं अफगानिस्तान में काम
अप्रैल में  भारत आए थे हामिद करज़ई
2005 में अफगानिस्तान गए थे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
1976 के बाद पहली बार 2005 में भारतीय प्रधानमंत्री काबुल गए
2001 से अफगानिस्तान में मौजूद हैं अमेरिकी और नाटो फौजें
नौ साल की लड़ाई के बाद भी शांति कायम नहीं
अफगानिस्तान में जूझ रहें हैं 130,000 विदेशी सैनिक
एक लाख अमेरिकी और 10 हजार ब्रितानी फौजी
उत्तरी अफगगानिस्तान में अगस्त में शुरु होगा बड़ा सौनिक अभियान
2009 में दूसरी बार राष्ट्रपपति चुने गए हामिद करजई
करज़ई को तालिगान गुट से शांति वार्ता के लिए अफगानिस्तान संसद का समर्थन
अफगानिस्तानी संसद ज़िरगा के 1600 सदस्य शांति वार्ता के लिए सहमत
ज़िरगा की बैठक में 16 सूत्रीय  संकल्प पारित
प्रमुख आतंकियों के नाम संयुक्त राष्ट्र की काली सूची से हटाने की मांग
26 तालिबान कैदियों को रिहा किया गया ।
  अवसंरचना में निवेश
जरांज- डेलाराम राजमार्ग में 750 करोड़
जरांज डेलाराम राजमार्ग 215 किलोमीटर लंबा
पुल-ए-खूमरी से काबूल तक ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण
सलमा डैम प्रावर प्रोजेक्ट को कुल 800 करोड़
 भारतीयों पर हमला
2007 से अब तक 6 बड़े हमले
सड़क सीमा संगठन से जुड़े लोग निशाने पर
2008 में हुए चार हमले
7 जुलाई 2008 को काबुल स्थित भारत के दूतावास पर हमला
हमले में  चार लोगों की हुई मौत
भारतीयों की सुरक्षा के लिए सेना और आईटीबीपी के जवान तैनात

इंडिया बनाम भारत


2010-11 के बजट में ग्रामीण विकास के लिए 66,100 करोड़ का आंवटन
 भारत निर्माण के छह पहलूओं में से एक है गरीबों के लिए गृह निर्माण
2001 की गणना के अनुसार 148 लाख घरों की कमी
भारत निर्माण के पहले चरण में था 60 लाख घर बनाने के लक्ष्य
पहले चरण में बने 71 लाख घर
दूसरे चरण के तहत अगले पांच साल में बनाऐंगे 120 लाख घर
इंदिरा आवास योजना के लिए 2010-11 में  दस हजार करोड़ रुपए का प्रावधान
इंदिरा आवास योजना के तहत मिलने वाली मदद बड़ी सामान्य क्षेत्र में 45,000 रुपए की मदद, पहाड़ी इलाकों  में  48,500 रुपए की मदद
1985 में शुरू हुई इंदिरा आवास योजना
इंदिरा आवास योजना के तहत अब तक बने 227 लाख आवास
अब तक इंदिरा आवास योजना पर 55663 कर¨ड़ रुपए खर्च
2005 में शुरु हुई राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना।
योजना के तहत गरीब परिवारों को दिए गए 2.34 करोड़ बिजली कनेक्शन
इस साल फरवरी तक 75 हजार गावों तक पहुंची बिजली।
11वीं योजना में 28,000 करोड़ ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए।
बजट में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के लिए 5500 करोड़।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना 2000 में हुई शुरु, पूरी बजट केन्द्र के जिम्मे।
500 की आबादी वाले गांवों में सड़क निर्माण के लिए बनी है योजना।
पहाड़़ी और जनजातीय इलाकों में 250 की आबादी वाले गांवों तक बनाएंगे सड़क।
2010-11 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को 12,000 करोड़ मिले।
मनरेगा के लिए 2010-11 में आवंटित 40,100 करोड़ रुपए
2006 में  देश के 200 जिलों में रोजगार योजना लागू।
मनरेगा अब सभी 621 जिलों में लागू।
मनरेगा का फायदा 10 करोड़ से ज्यादा गरीब परिवारों को।
मनरेगा के तहत कई गड़बड़यों की शिकायतें
संपूर्ण स्वच्छता अभियान के लिए बजट में 1580 करोड़ का प्रावधान
अभियान के तहत 1999 से अब तक 6 करोड़ ग्रामीण घरों में बने श©चालय
2001 की गणना के अनुसार  सिर्फ 21 फ़ीसदी ग्रामीण घरों में थे शौचालय
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के लिए बजट में 9000 करोड़
2005 में लागू हुआ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
2012 तक स्वास्थ्य पर खर्च होगा जीडीपी का 2-3 फ़ीसदी
कैग के मुताबिक सालाना एक लाख करोड़ नही हो पाता खर्च।
लचर प्रबंधन और ढ़ीली निगरानी के कारण आवंटित राशि का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता।

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

सब्सिडी से सबक?


2010-11 में 1.16 लाख करोड़ रुपए की कुल सब्सिडी
2010-11 में 1.16 लाख करोड़ खर्च हुआ सब्सिडी पर
खाद्यान्न खाद और पेट्रोलियम पर 2009 में 1.08 लाख करोड़ की सब्सिडी दी गई।
बजट के मुताबिक 2011-12  में सब्सिडी पर होन वाले खर्च में होगी कमी।
2011-12 के बजट के मुताबिक जीडीपी का 1.5 फ़ीसदी खर्च सब्सिडी के लिए होगा।
2012-13 में इस रकम जीडीपी का 1.3 फ़ीसदी करने का लक्ष्य
90 फ़ीसदी सब्सिडी, पीडीएस, खाद और पेट्रोलियम पर
यूरिया पर जारी है मूल्य नियंत्रण
सरकार के मुताबिक पोषण आधारित सब्सिडी नीति के दूसरे चरण में यूरिया की कीमतों पर से हटेगा नियंत्रण
पोषण आधारित सब्सिडी लागू। इससे घटेगा केन्द्र पर सब्सिडी का बोझ
2009-10 में खाने के सामान पर मिली 0.9 फ़ीसदी सब्सिडी
2010-11 में खाद्यान्न पर मिलने वाली सब्सिडी जीडीपी का 1.1 फ़ीसदी
खाद्य सुरक्षा विधेयक आयेगा शीतकालीन सत्र में ।
पेट्रोल के दाम बाजार के हवाले। तब से 50 फीसदी तेल के दाम बढ़े।
डीजल किरोसिन और एलपीजी की कीमतें अब भी सरकार के नियंत्रण में।
रंगराजन समिति ने 2006 में पेट्रो उत्पादों से नियंत्रण हटाने की दी थी सलाह
2010 में किरीट पारिख समिति ने पेट्रो उत्पादों के लिए बाजार आधारित मूल्य नीति अपनाने की दी राय
 जुलाई 2010 में पेट्रोल की कीमतों को किया गया नियंत्रण मुक्त
भारत 80 फीसदी कच्चे तेल का आयात करता है
सरकार की तेल कंपनियों को रोजाना होता है 290 करोड़ का घाटा।
एक सर्वे के मुताबिक पीडीएस का 40 फ़ीसदी किरोसिन तेल काले बाज़ार में बिक जाता है।

12वी पंचवर्षिय योजना

12वी पंचवर्षिय योजना के दस्तावेज को राष्ट्रीय विकास परिषद ने हरी झंडी दिखा दी। 2012 से 2017 तक विकास की तस्वीर और देष की तकदीर किस दिशा में चलेगी इसकी लिए विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक बदलावों की तरफ इशारा किया गया है। 12 पंचवर्षीय योजना का असली मकसद विकास को तेज, टिकाऊ और ज्यादा समग्र बनाना है। आने वाले सालों में 9 फीसदी विकास दर का लक्ष्य रखा गया है। जबकि 11वीं  पंचवर्षिय योजना में 8.2 फीसदी विकास दर रहने का अनुमान है। खासकर तब जब वैश्विक स्तर में सुस्त विकास के चलते हमारी अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ा है। अर्थव्यवस्था के पहले 6 माह के आंकड़ों को देखकर इस वित्तिय वर्ष में रखे गए विकास दर के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल लग रहा है। आर्थिक संपादकों के सम्मेलन में प्रणब मुखर्जी यह स्वीकार भी कर चुकें हैं कि मौजूदा वित्तिय वर्ष में निधार्रित किए गए विकास लक्ष्य तक पहुंचना कठिन काम होगा। साथ ही राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.6 फीसदी तक लाने का काम भी आसान नही होगा। यह दस्तावेज ऐसे समय में सामने आया है जब सरकार के सामने कई चुनौतियां मुंह बाएं खड़ी है। महंगाई बेलगाम है। अर्थव्यवस्था की रफतार सुस्त है। कच्चे तेल के दाम आसपमान छू रहे हैं। भ्रष्टाचार के चलते सरकार की साख गिरी है। हमारे लिए चुनौति वैश्विक आर्थिक बदलाव के झंझावातों को भी सहते हुए समग्र विकास की राह में आगे चलना है। 12वी पंचवर्षिय योजना में चार क्षेत्रों को प्रमुखता दी गई है। स्वास्थ्य के स्थर को सुधारना, शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव के साथ उसका कुशल क्रियान्वयन करना। साथ ही कौशल विकास कार्यक्रम को तेजी से लागू करना। पर्यायवरण संबंधी रूकावटों केा दूर कर विकास मे तेजी लाना और आधारभूत ढांचे में बड़े निवेष लाने के लिए नीतिगत सुधारों को अमलीजामा पहनाना।

वर्तमान में सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में 1 फीसदी के आसपास खर्च करती है जबकि 2004 में उसके न्यूनतम साझा कार्यक्रम में 11 वें प्लान के अंत तक जीडीपी का 2 से 3 फीसदी खर्च की बात कही गई थी। अब सरकार आने वाले सालों में जनस्वास्थ्य की स्थिति को सुधारने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर ज्यादा खर्च करेगी। चूंकि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है इसलिए राज्य सरकारों को अपने बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता देनी होगी। ताकि उपकेन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों को बेहतर सुविधाऐं मिल पाए। इस क्षेत्र में मानव संसाधनों की कमी को दूर किया जा सके। दूसरा सवाल शिक्षा के अधिकार को लागू करने से जुड़ा है। इसके लिए सरकार आने वाले सालों में भारी भरकम खर्च करेगी। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है जहां 10वीं पंचवर्षिय योजना में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में 17 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया था वहीं 11 वें प्लान में यह 71 हजार करोड़ था। अब शिक्षा 1 से 14 वर्ष के बच्चों का संवैधानिक अधिकार है इसलिए सरकार इस क्षेत्र में पर्याप्त संसाधन मुहैया कराने के लिए बाध्य है। भारत सरकार 2020 तक 50 करोड़ युवा आबादी को कौशल विकास कार्यक्रम से जोड़ना चाहती है ताकि उन्हें आजीविका के लिए बेहतर रोजगार मिल सके।
 तीसरा पर्यायवरण के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। खासकर 33 फीसदी वनीकरण के लक्ष्य को पाना जो वर्तमान में 23 फीसदी के आसपास है। पूरे विश्व के सामने जलवायु परिवर्तन आज बड़ी चिंता का विषय है। इस मुद्दे पर पूरे विश्व में चिंतन मनन चल रहा है। भारत सरकार ने इससे निपटने के लिए दिर्घकालिक रणनीति के तहत आठ मिशनों का गठन किया है जो पर्यायवरण संरक्षण के भावना से ओतप्रोत हैं। इसके अलावा परियोजनाओं में होन वाली देरी का सबसे बड़ा कारण समय से पर्यावरण की मंजूरी न मिलन है। इसके चलते न सिर्फ परियोजनाऐं लंबित है बल्कि उसकी लागत में भी भारी इजाफा हो रहा है। नतीजतन इसका सीधा असर विकास की गति पर पड़ता है। नदियों को प्रदूषण से बचाने के गंभीर उपाय हमें करने होंगे। गंगा एक्शन प्लान, यमुना एक्शन प्लान और राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर खास ध्यान देना होगा। चैथा बुनियादी ढांचा। सही मायने में यह विकास का इंजन है। इसकी कमी के चलते विकास की रफतार को बरकरार रखना मुमकिन नही है। बुनियादी ढांचे मसलन सड़क, रेल, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली उत्पादन, दूरसंचार तेल एवं गैस पाइपलाइन और सिंचाई व्यवस्था में व्यापक सुधार आज देश की सबसे बड़ी जरूरत है। 12वें प्लान में 9 फीसदी विकास दर को पाने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की बात कही है। 10 वे प्लान में बुनियादी ढांचे में खर्च  जीडीपी के 5 फीसदी था जो बढ़कर 11वें प्लान में 8.9 फीसदी था। अब 12 प्लान में जीडीपी का 11 फीसदी तकरीबन 41 लाख करोड़ रूपये बुनियादी ढांचे पर खर्च किए जाऐंगे। गौर करने की बात यह है कि इसका 50 फीसदी हिस्सा निजि क्षेत्र से लाने का लक्ष्य रखा गया है। वैसे देखा जाए तो 11 वे प्लान के पहले चार साल में दूरसंचार और तेल व गैस पाइपलाइन में अच्छा निवेश हुआ। मगर बिजली उत्पादन, रेलवे, सड़क और बंदरगाह में निवेश जरूरत में मुताबिक नही हो पाया। खासकर बिजली उत्पादन के तहत रखे गए 78700 मेगावाट के लक्ष्य को हम प्राप्त नही कर पाए। कहा जा रहा है कि केवल 50 हजार मेगावाट अतिरिक्त बिजली के उत्पादन का लक्ष्य पूरा हो पाएगा। योजना आयोग के मुताबिक 11 वे प्लान में 500 बिलियन डालर के निवेश के लक्ष्य 15 फीसदी से पीछे रह जाएगा। 11 वे प्लान में कुल निवेश का 30 फीसदी निजि क्षेत्र से आया। इसलिए 50 फीसदी निजि निवेश को पाने के लिए हमें हर स्तर पर मौजूद कार्यषैली में बदलाव लाने की जरूरत है। वर्तमान में भारत में 1017 सार्वजनिक निजी भागीदारी के कुल 486603 करोड़ लागत की परियोजना अमल में लाई गई हैं। भारत में योजनाओं का सफल क्रियान्वयन हमेशा एक चुनौति रहा है। केन्द्र सरकार की ज्यादातर केन्द्रीय प्रयोजित योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को नही मिल पाता। यहां तक की राज्य सरकारें संसाधनो के अभाव में पूरी राशि खर्च नही कर पा रही  हैं। व्यापक निगरानी व्यवस्था का कमी के चलते योजनाऐं अपने मकसद से भटक रहीं है। आज देश में सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, शिक्षा का अधिकार जैसे कानून मौजूद हैं। भोजन के अधिकार का सबको इंतजार है। सवाल उठता है की आजादी के 64 साल बीत जाने के बाद भ्रष्टाचार, बरोजगारी, अशिक्षा और भूखमरी जैसी समस्याऐं क्यों व्याप्त हैं। आज इन ज्वलंत सवालों के जवाब तलाशने की जरूरत है ? 11 विकासोन्मुखी पंचवर्षिया योजनाओं ने इस देश को क्या दिया? इन योजनाअेां के क्रियान्वयन को लेकर हमारा अनुभव क्या रहा ? क्या यह दस्तावेज पुरानी योजनाओं के अनुभव से सीख लेकर तैयार किया गया है? है या यह एक महज रस्मअदायगी है।












12वी पंचवर्षिय योजना के दस्तावेज


12वी पंचवर्षिय योजना के दस्तावेज को राष्ट्रीय विकास परिषद ने हरी झंडी दिखा दी। 2012 से 2017 तक विकास की तस्वीर और देष की तकदीर किस दिशा में चलेगी इसकी लिए विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक बदलावों की तरफ इशारा किया गया है। 12 पंचवर्षीय योजना का असली मकसद विकास को तेज, टिकाऊ और ज्यादा समग्र बनाना है। आने वाले सालों में 9 फीसदी विकास दर का लक्ष्य रखा गया है। जबकि 11वीं  पंचवर्षिय योजना में 8.2 फीसदी विकास दर रहने का अनुमान है। खासकर तब जब वैश्विक स्तर में सुस्त विकास के चलते हमारी अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ा है। अर्थव्यवस्था के पहले 6 माह के आंकड़ों को देखकर इस वित्तिय वर्ष में रखे गए विकास दर के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल लग रहा है। आर्थिक संपादकों के सम्मेलन में प्रणब मुखर्जी यह स्वीकार भी कर चुकें हैं कि मौजूदा वित्तिय वर्ष में निधार्रित किए गए विकास लक्ष्य तक पहुंचना कठिन काम होगा। साथ ही राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.6 फीसदी तक लाने का काम भी आसान नही होगा। यह दस्तावेज ऐसे समय में सामने आया है जब सरकार के सामने कई चुनौतियां मुंह बाएं खड़ी है। महंगाई बेलगाम है। अर्थव्यवस्था की रफतार सुस्त है। कच्चे तेल के दाम आसपमान छू रहे हैं। भ्रष्टाचार के चलते सरकार की साख गिरी है। हमारे लिए चुनौति वैश्विक आर्थिक बदलाव के झंझावातों को भी सहते हुए समग्र विकास की राह में आगे चलना है। 12वी पंचवर्षिय योजना में चार क्षेत्रों को प्रमुखता दी गई है। स्वास्थ्य के स्थर को सुधारना, शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव के साथ उसका कुशल क्रियान्वयन करना। साथ ही कौशल विकास कार्यक्रम को तेजी से लागू करना। पर्यायवरण संबंधी रूकावटों केा दूर कर विकास मे तेजी लाना और आधारभूत ढांचे में बड़े निवेष लाने के लिए नीतिगत सुधारों को अमलीजामा पहनाना।

वर्तमान में सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में 1 फीसदी के आसपास खर्च करती है जबकि 2004 में उसके न्यूनतम साझा कार्यक्रम में 11 वें प्लान के अंत तक जीडीपी का 2 से 3 फीसदी खर्च की बात कही गई थी। अब सरकार आने वाले सालों में जनस्वास्थ्य की स्थिति को सुधारने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर ज्यादा खर्च करेगी। चूंकि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है इसलिए राज्य सरकारों को अपने बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता देनी होगी। ताकि उपकेन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों को बेहतर सुविधाऐं मिल पाए। इस क्षेत्र में मानव संसाधनों की कमी को दूर किया जा सके। दूसरा सवाल शिक्षा के अधिकार को लागू करने से जुड़ा है। इसके लिए सरकार आने वाले सालों में भारी भरकम खर्च करेगी। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है जहां 10वीं पंचवर्षिय योजना में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में 17 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया था वहीं 11 वें प्लान में यह 71 हजार करोड़ था। अब शिक्षा 1 से 14 वर्ष के बच्चों का संवैधानिक अधिकार है इसलिए सरकार इस क्षेत्र में पर्याप्त संसाधन मुहैया कराने के लिए बाध्य है। भारत सरकार 2020 तक 50 करोड़ युवा आबादी को कौशल विकास कार्यक्रम से जोड़ना चाहती है ताकि उन्हें आजीविका के लिए बेहतर रोजगार मिल सके।
 तीसरा पर्यायवरण के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। खासकर 33 फीसदी वनीकरण के लक्ष्य को पाना जो वर्तमान में 23 फीसदी के आसपास है। पूरे विश्व के सामने जलवायु परिवर्तन आज बड़ी चिंता का विषय है। इस मुद्दे पर पूरे विश्व में चिंतन मनन चल रहा है। भारत सरकार ने इससे निपटने के लिए दिर्घकालिक रणनीति के तहत आठ मिशनों का गठन किया है जो पर्यायवरण संरक्षण के भावना से ओतप्रोत हैं। इसके अलावा परियोजनाओं में होन वाली देरी का सबसे बड़ा कारण समय से पर्यावरण की मंजूरी न मिलन है। इसके चलते न सिर्फ परियोजनाऐं लंबित है बल्कि उसकी लागत में भी भारी इजाफा हो रहा है। नतीजतन इसका सीधा असर विकास की गति पर पड़ता है। नदियों को प्रदूषण से बचाने के गंभीर उपाय हमें करने होंगे। गंगा एक्शन प्लान, यमुना एक्शन प्लान और राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर खास ध्यान देना होगा। चैथा बुनियादी ढांचा। सही मायने में यह विकास का इंजन है। इसकी कमी के चलते विकास की रफतार को बरकरार रखना मुमकिन नही है। बुनियादी ढांचे मसलन सड़क, रेल, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली उत्पादन, दूरसंचार तेल एवं गैस पाइपलाइन और सिंचाई व्यवस्था में व्यापक सुधार आज देश की सबसे बड़ी जरूरत है। 12वें प्लान में 9 फीसदी विकास दर को पाने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की बात कही है। 10 वे प्लान में बुनियादी ढांचे में खर्च  जीडीपी के 5 फीसदी था जो बढ़कर 11वें प्लान में 8.9 फीसदी था। अब 12 प्लान में जीडीपी का 11 फीसदी तकरीबन 41 लाख करोड़ रूपये बुनियादी ढांचे पर खर्च किए जाऐंगे। गौर करने की बात यह है कि इसका 50 फीसदी हिस्सा निजि क्षेत्र से लाने का लक्ष्य रखा गया है। वैसे देखा जाए तो 11 वे प्लान के पहले चार साल में दूरसंचार और तेल व गैस पाइपलाइन में अच्छा निवेश हुआ। मगर बिजली उत्पादन, रेलवे, सड़क और बंदरगाह में निवेश जरूरत में मुताबिक नही हो पाया। खासकर बिजली उत्पादन के तहत रखे गए 78700 मेगावाट के लक्ष्य को हम प्राप्त नही कर पाए। कहा जा रहा है कि केवल 50 हजार मेगावाट अतिरिक्त बिजली के उत्पादन का लक्ष्य पूरा हो पाएगा। योजना आयोग के मुताबिक 11 वे प्लान में 500 बिलियन डालर के निवेश के लक्ष्य 15 फीसदी से पीछे रह जाएगा। 11 वे प्लान में कुल निवेश का 30 फीसदी निजि क्षेत्र से आया। इसलिए 50 फीसदी निजि निवेश को पाने के लिए हमें हर स्तर पर मौजूद कार्यषैली में बदलाव लाने की जरूरत है। वर्तमान में भारत में 1017 सार्वजनिक निजी भागीदारी के कुल 486603 करोड़ लागत की परियोजना अमल में लाई गई हैं। भारत में योजनाओं का सफल क्रियान्वयन हमेशा एक चुनौति रहा है। केन्द्र सरकार की ज्यादातर केन्द्रीय प्रयोजित योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को नही मिल पाता। यहां तक की राज्य सरकारें संसाधनो के अभाव में पूरी राशि खर्च नही कर पा रही  हैं। व्यापक निगरानी व्यवस्था का कमी के चलते योजनाऐं अपने मकसद से भटक रहीं है। आज देश में सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, शिक्षा का अधिकार जैसे कानून मौजूद हैं। भोजन के अधिकार का सबको इंतजार है। सवाल उठता है की आजादी के 64 साल बीत जाने के बाद भ्रष्टाचार, बरोजगारी, अशिक्षा और भूखमरी जैसी समस्याऐं क्यों व्याप्त हैं। आज इन ज्वलंत सवालों के जवाब तलाशने की जरूरत है ? 11 विकासोन्मुखी पंचवर्षिया योजनाओं ने इस देश को क्या दिया? इन योजनाअेां के क्रियान्वयन को लेकर हमारा अनुभव क्या रहा ? क्या यह दस्तावेज पुरानी योजनाओं के अनुभव से सीख लेकर तैयार किया गया है? है या यह एक महज रस्मअदायगी है।

अल्पसंख्यकों का दर्द


2006 में प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का हो
मार्च 2005 में गठित की गई थी सच्चर समिति की रिपोर्ट के बाद की टिप्पणी।
अल्पसंख्यकों के हालात की थाह लेने के लिए बनी सच्चर समिति
रिपोर्ट का मकसद अल्पसंख्यकों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति की जानकारी लेना था।
नवंबर, 2006 में सच्चर समिति ने सरकार को सौंपी 403 पेज की रिपोर्ट।
सच्चर समिति ने रिपोर्ट में दिए 76 सुझाव।
नवंबर 2006 में सदन पटल में रखी गई रिपोर्ट।
सच्चर समिति की रिपोर्ट से संबंध रखते हैं 22 मंत्रालय।
7 मई, 2010 को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक हुआ पारित।
देश भर में वक्फ बोर्ड के कामकाज में सुधार के लिए पारित हुआ विधेयक।
दिसंबर, 2009 को संसद में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग की रिप¨र्ट प्रस्तुत।
आयोग ने अल्पसंख्यकों के लिए 15 फ़ीसदी आरक्षण का दिया सुझाव।
इसमें से 10 फीसदी आरक्षण मुसलमानों को देने का सुझाव।
आय¨ग ने आर्थिक-सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया आरक्षण का सुझाव।
2010-11 में अल्पसंख्यक मंत्रालय को मिले 2600 करोड़।
2009-10 में अल्पसंख्यक कल्याण के लिए ख़र्च हुए 1710 करोड़।
25 मार्च, 2010 में  सर्वोच्च न्यायालय ने पिछड़े मुस्लिमों को आरक्षण देने का दिया अंतरिम फैसला
आंध्र प्रदेश में पिछड़े मुसलमानों को नौकरी और शिक्षण संस्थानों ममें दिया था 4 फ़ीसदी आरक्षण
8 फरवरी, 2010 को उच्च न्यायालय की सात सदस्यीय पीठ ने 4 फीसदी आरक्षण नकारा।
बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने दिया अंतरिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की संवैधानिक पीठ को सौंपा गया मामला।

रविवार, 16 अक्टूबर 2011

अन्ना की मांग की तामील हो


शीतकालिन सत्र में जनलोकपाल बिल हो पारित।
सांसदों के संसदीय प्रदर्षन सालाना अंकेक्षण हो।
जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने के अधिकार और चुनाव के वक्त इनमें से कोई नही के प्रावधान पर सरकार करे विचार।
ग्राम सभा को ज्यादा शक्ति प्रदान की जाए। खासकर जमीन अधिग्रहण पर ग्राम सभाओं को मिले महत्व।


सरकार ने भ्रष्टाचार में बनाए गए मंत्रियों के समूह की सिफारिश स्वीकार की
17 फास्ट ट्रैक सीबीआई कोर्ट का गठन हो।
अभियोजन चलाते की इज़ाजत तीन महिने के भीतर देना अनिवार्य।
केन्द्रीय सर्तकता अयोग को मजबूत बनाया जाए।
सरकारी खरीद से जड़ी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए।
सेवनिवृति के बाद भी पेंशन में हो सकती है 10 फीसदी की कटौति।
बड़े मामलों में यह 20 फीसदी भी हो सकती है।
भ्रष्टाचार को रोकने सम्बन्धि कानून में होगा संशोधन
भ्रष्टाचार विरोधी अंतराष्ट्रीय संधियों को किया जाए रेटीफाई