रविवार, 4 सितंबर 2011

सांसदों की जिलास्तरीय निगरानी व्यवस्था से हुआ मोहभंग


लगता है हमारे परम आदरणीय सांसदों का जिला स्तर निगरानी समिति के कामकाज से मोहभंग हो गया है। सरकार ने उन्हें इस समिति का अध्यक्ष जरूर बनाया है मगर सांसदों की मानें तो उन्हें नाममात्र का अध्यक्ष बनाया गया जबकि उनकी सुनवाई कहीं नही होती। निम्नलिखित योजनाओं की निगरानी के लिए सरकार ने राज्य स्तर और जिला स्तर पर निगरानी तंत्र बनाया है। राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में और केन्द्र स्तर पर सांसदों के स्तर पर निगरानी तंत्र का गठन किया गया है। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत त्रीस्तरीय निगरानी व्यवस्था का गठन किया गया है। इसमें एक केन्द्र के स्तर पर नेशनल लेवल मानीटर और 2 तंत्र राज्य के स्तर पर बनाए गए हैं। इसके अलावा नेषलन रूरल हेल्थ मिशन, संपूर्ण स्वच्छता अभियान, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतिकरण जैसे योजनाओं का निगरानी का जिम्मा सांसदों को दिया गया है। बकायदा सालाना आधार पर प्रत्येक राज्यों और जिलों में कितनी बैठकें होनी है इसके दिशानिर्देश केन्द्र ने जारी कर रखें हैं। मसलन सालान आधार में 28 राज्यों में 112 बैठकें होनी चाहिए मगर 2006-07 में 35, 2007-08 में 36 और 2008-09 में 35 बैठकें भी हो पायी। हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, मिजोरम ,दादर और नागर हवेली में पिछले 2 सालों में एक भी बैठक नही हुई। वही 619 जिलों में कुल 2476 बैठकें होनी चाहिए। मगर 2006-07 में 619, 2007-08 में 912 और 2008-09 में 579 बैठकें ही हुई। महात्मा गांधी नरेगा में सोशल आडिट का प्रावधान है। बकायदा हर जिले पर एक लोकपाल नियुक्त करने के दिशानिर्देश जारी किये गए हैं। समाज के जागरूक लोगों का एक पैनल गठित करने की बात कही गई है। खासकर निगरानी को लेकर पंचायतों की भूमिका को काफी अहम बना दिया गया है। आज बजट की एक बडी राषि ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों के लिए खर्च की जा रही है। जरूरत है इन योजनाओं का जरूरतमंदों तक पहुंचाने की।

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