मंगलवार, 20 सितंबर 2011

विकास बनाम भ्रष्टाचार

मेरा भारत महान। सौ में से नब्बे बेइमान। फिल्मों में बोले इस डायलाग से किसी को ताज्जूब नही हुआ। क्योंकि यह आज के भारत की एक कड़वी सच्चाई है। भारत आर्थिक तरक्की की राह में निरन्तर आगे बढ़ रहा है। अर्थव्यवस्था 8 फीसदी की तेज रफतार से दौड रही है। सेंसेक्स की 17 हजार की जबरदस्त  छलांग। उपर से लबालब भरा हमारी विदेशी कोष। ये सब गवाह है भारत की गुलाबी तस्वीर के। सारे बिन्दू बयां कर रहे है कि भारत विकसित देशों की कतार में शमिल होने जा रहा है। पल भर के लिए आप और हम यह सब जानकर खुशी से फूले नही समा रहे हैं। मगर क्या कहे बात निकली है तो दूर तलक जायेगी। बात साफ है कि भ्रष्टाचार आज हमारी तरक्की का सबसे बड़ा रोड़ा है। इससे निजात पाये बिना विकसित भारत की सपना कही कपोर कल्पना बनकर न रह जायें। ट्रांसपैरेन्सी इंटरनेशनल की हाल में आई रिपोर्ट में भ्रष्टतम देशों की गिनती में भारत का 120 पायेदान में पहुंचना थोड़ी राहत जरूर देता है। मगर नतीजों में अगर गौर किया जाये तो कुछ मुद्दे किसी डरावने सपने से कम नही। मसलन केवल 11 महकमे ही हमें सेाचने पर मजबूर कर देते है। पुलिस, निचली अदालतें, सरकारी अस्पताल,  निकाय, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, बिजली विभाग में भ्रष्टाचार कोई नई बात नही है। रिपोर्ट कहती है कि इन 11 महकमों में सालाना 21068 करेाड रूपये घूस के तौर पर दिये जाते हैं। पुलिस सबसे ज्यादा भ्रष्ट है। निचली अदालत दूसरे नम्बर पर तो जमीन से जुडे मामले में भी जमकर लूटघसूट होती है। बिहार को एक बार फिर माहाभ्रष्ट राज्य का तोहफा मिला है। वहीं उम्मीद के मुताबिक केरल शान से कह सकता है। से नो टू करप्सन। संसद, न्यायपालिका, नौकरशाही, भ्रष्टाचार के बड़े अड्डे बन गये हंै। प्रशासनिक पारदर्शिता और परिणाम परेासने की जिम्मेदारी के आभाव में भ्रष्टाचार निरंकुश हुआ है। मौजूदा हालात में विजन 20- 20 जैसे दावे को झूठलाता है। उपर से प्रबल राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी दाद में खाज का काम कर रही है।
लोकपाल विधेयक।
सूचना का अधिकार।
माडल पुलिस एक्ट।
निगरानी समिति।
प्रशासनिक आयोग की सिफारिशें।
जनप्रतिनीधि को वापस बुलाने का अधिकार।
जजेस इनक्वारी बिल।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें