मंगलवार, 11 जून 2013

विशेष राज्य का दर्जा देने की हमारी मांगे पूरी करो!

विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर अब बीजेडी दिल्ली में स्वाभिमान रैली निकाल रही है। इसके पीछे 
तर्क दिया जा रहा वहां की 23 फीसदी आदिवासी आबादी को, गरीबी को और बाकी आर्थिक सामाजिक 
मापदंडों को। मैने पहले भी यह कहा की मापदंडों में किसी भी तरह के बदलाव से कई राज्यों विशेष 
राज्य की श्रेणी में आने के लिए लार टपका रहे है। अब नवीन पटनायक भी इसी रणनीति पर काम कर 
रहे हैं। लेकिन इसके पीछे राजनीतिक समीकरणों को समझना होगा। क्या अभी ममता बनर्जी , नीतीश कुमार
और नवीन पटनायक क्या मिलकर एक फ्रंट की शुरूआत कर सकते हैं। देश में तीसरे मोर्चे को वैसे तो कोई 
भविष्य नही दिखाई देता मगर एक मजबूत फ्रंट अगर अस्तित्व में आता है तो आने वाले समय में बनने वाली
सरकार न तो उसके बिना बन पाएगी और न ही उसकी शर्तो को दरकिनार कर पाएगी। इसलिए इस तरह
के फ्रंट लोकसभा चुनाव से पहले बनना जरूरी दिख रहा है।

बिहार लंबे समय से मागं रहा है विशेष राज्य का दर्जा। अगर इस राज्य की मांग मानी जाती है तो और कई राज्य अपनी आवाज मुखर करेंगे।
11 राज्यों को इस समय विशेष राज्य का दर्जा मिला है। इसमें 7 पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम, उत्राखंड जम्मू और कश्मीर और हिमांचल प्रदेश।
किसी भी राज्य के लिए इस श्रेणी में आना कितना फायदे मंद है।
बिहार के अलावा छत्तीसगढ़, झारखंड ओडिशा राजस्थान पिछले दल सालों से विशेष राज्य का दर्जा मांग रहे है। इसके पीछे इनके अपने तर्क
है। ओडीशा कहता है हमें यहां गरीबी ज्यादा है। राजस्थान का आधार है रेगिस्तान और पूदषित जल, झारखंड और छत्तीसगढ़ नक्सल प्रभावित
होने की वजह से इसकी मांग करते हैं।

विशेष राज्य प्राप्त करने की योग्यता
आर्थिक रूप से पिछड़ा हो।
जनजाति बहुल आबादी 
पड़ोसी देश की सीमा से लगे हुए राज्य
पहाड़ी इलाके
राजस्व जुटाने के मजबूत साधन न हो।
कई ऐसे दुर्गम क्षेत्र जहां विकास कार्यो में आने वाली लागत काफी ज्यादा हो।

विशेष राज्यों को क्या मिलता है
उत्पाद शुल्क में छूट
केन्द्रीय प्रायोजित योजनाअेां में 90 फीसदी अनुदान।

क्या विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए नए मापदंड स्थापित हों। नीतिश कुमार
योजना आयोग के अंतर मंत्रालय समूह ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से मना कर दिया। समझ से बाहर है की नीतिश इस मुददे
पर इतनी उर्जा क्येां लगा रहे है।
प्रधानमंत्री से मुलाकत कर चुके है।
सवा करोड़ लोगों का हस्ताक्षकर कराकर वह दबाब बना चुके है।
यहां तक की उन्होने यह तक कह दिया कि जो सरकार विशेष राज्य का दर्जा बिहार को देगी वह उसके साथ खड़े होंगे।

योजना आयोग के तर्क हैं
बिहार में राजस्व के कई स्रोत हैं। परंपरागत रूप से संपन्न राज्य है।
केन्द्रीय प्रायोजित बिहार पैकेज में लगभग राज्य के सभी जिलों को शामिल किया गया है।
बीआरजीएफ में भी राज्य का लगभग हर जिला शामिल है।
अकेले इस योजना में बिहार को मार्च 2012 तक 8495.08 करोड़ जारी किए जा चुके हैं।

विशेष राज्या का दर्जा के लिए राष्टीय विकास परिषद से मंजूरी लेनी पड़ती है।
अपै्रल 1969 में एनडीसी ने गाडगिल फार्मूले को स्वीकृति दी।
1970 -71 में असम जम्मू और कश्मीर और नागालैंड और हिमाचल प्रदेश को मिला विशेष राज्य का दर्जा
मणीपुर मेधालय और त्रिपुरा को मिला1971 -72, सिक्किम को 1975-76 में अरूणांचल प्रदेश और मिजोरम को 1986-87 में और 
उत्तराखंड को 2001-2002 में मिला।

जुलाई 2011 को बिहार के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री को एक मैमारेंडम सौंपा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले।
इसके बाद एक इन्टर मिनिस्टियल ग्रुप बनाया गया जो इस मांग पर गौर करेगा। अब इस समूह ने यह मांग खारिज कर दी है।

बिहार के तर्क
प्राकृतिक आपदा से लगातार प्रभावित
प्रति व्यक्ति आय राष्टीय औसत आय से कम।

नीतिश कुमार सिर्फ और सिर्फ राजनीति कर रहें है।
उनकी विफलताओं से यह ध्यान हटाने का तरीका हैं।
उनको लगता है यह मुददे उनकी राजनीति नैयया पार लगा देगा अगले चुनावों मे।

पूरे प्रदेश में अधिकार यात्रा। 4 नवंबर को अधिकार रैली। दिल्ली के रामलीला मैदान पर भी रैली का आयोजन करने की घोषणा।

उनके विरोधी कहते हैं की जब नीतिश वाजपेयी सरकार में मंत्री थे और विशेष राज्य के दर्जे से संबंधित प्रस्ताव जब सरकार को भेजा 
गया तो उन्होंने क्यों चुप्पी साधे रखी। उस समय बिहार के विशेश सहायता समिति के अध्यक्ष नीतिश कुमार थे। बकायदा केन्द्र में बिहार 
के 4 पांच मंत्री थे।

कुछ यह भी कहते हैं उनके साथी शिवानंद तिवारी और शरद यादव की उनके इस अभियान में कोई खास रूची नही लेते।
बीजेपी इस अभियान में कहीं नही है।

सवाल यह भी है जो विशेष राज्य के दर्जे के बगैर जो काम होने चाहिए क्या उनमें नीतिश ने ध्यान दिया है।
उनको लगता है मिले या दर्जा न मिले उन्हें बिहार की कुर्सी जरूरी मिल जाएगी।

बिहार के विकास पर एक नजर
11 वे प्लान  8.5 फीसदी
अचिवमेंट  12.08 फीसदी

प्रति व्यक्ति आय  11 प्लान में 
भारत  - 38425
बिहार - 15268

राजकोषिय घाटा
2012-13 बीई भारत -5.1 फीसदी
             बिहार - 2.1 फीसदी

12 वे प्लान का टारगेट  13 फीसदी
केवल कृषि से आप  7 फीसदी दर का अनुमान लगा रहें है।
12 प्लान में आपने 20 हजार करोड़ के स्पेशल मांग की है।
20 हजार करोड़ यानि 4000 करोड़ प्रति वर्ष।
प्लान साइल आपको जो मिला वह है 28000 करोड़।

बिहार को आज जरूरत है आजीविका के साधन तलाशने की।
पलायन में कमी आई है।
तेंदुलगर समिति के मापदंडों के आधार पर भी बिहार में गरीबी ज्यादा है।
साक्षरता दर सुधरी जरूर है मगर अभी बहुत पिछे हैं।
जो कंेन्द्रीय प्रायेाजित योजना में फलैक्सिीबिलिटी की वो बात करतें है वह मान लिया गया।

केन्द्र सरकार ने दिए संकेत
जल्द पिछड़पन तय करने वालों मानकों में बदलाव के दिए संकेत।
मसलन एमएमआर आइएमआर और प्रति व्यक्ति आय को शामिल किया जाएगा।
अगर ऐसा होता है तो ओडिशा झारखंड गोवा और छत्तीसढ़ और राजस्थान इसमें शामिल हो सकते हैं।
अगले दो महिनों में सरकार मानकों की घोषणा कर सकती है।
कर्ज में फंसे पश्चिम बंगाल पंजाव और केरल को वित्त आयोग से मिल सकती है राहत।

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