रविवार, 16 जून 2013

राहुल के चुनावी खेवनहार

कांग्रेस ने संगठन में फेरबदल किया है। कई नए चहरों का महासचिव बनाया है। कईयों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है। सबसे दिलचस्प रहा मधुसूधन मिस्त्री को उत्तरप्रदेश का प्रभार देना। मधुसूदन मिस्त्री गुजरात से आते है। नरेन्द्र मोदी पर हमलावर रहते हैं। पिछड़े वर्ग से आते हैं। कर्नाटक में कांग्रेस को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और हाल ही में देशभर का दौरा कर एक रिपोर्ट राहुल गांधी को सौंपी है लोकसभा के सीटों के आंकलन पर। यानि राहुल के विश्वासपात्रों में से एक है मुधूसूदन मिस्त्री। अब  राहुल ने उन्हें उत्तरप्रदेश की जिम्मेदारी सौंप कर साफ कर दिया है की वह नरेन्द्र मोदी से मुकाबले का  नेतृत्व खुद करेंगे। यानि मोदी के अमित शाह के सामने राहुल के मधुसूदन मिस्त्री। चुनाव नजदीक आते  आते बयानों के तीखे तीर चलने की अब आगाज़ हो जाएगा। वहीं मुश्किल में फंसे आंध्र में कांग्रेस के खेवनहार रहेंगे दिग्गी राजा। कांग्रेस का दक्षिण का सबसे मजबूत गढ़ है आंध्र प्रदेश। अब देखना यह होगा की  उत्तप्रदेश में हार के बाद दिग्विजय सिंह कांग्रेस के इस गढ़ को बचा पाऐंगे? खासकर तेलांगाना के मुददे पर क्या कांग्रेस कोई फैसला ले पाएगी? तीसरा अजय माकन को मजबूती मिली है मगर क्या यह शीला को  कमजोर करने की कवायत है या उनकी रास्ते से मुश्किलों को कम करने की कोशिश। क्योंकि दोनों का  झगड़ा जगजाहिर है। तीसरा सीपी जोशी को महासचिव बनाना भी एक तरह से अशोक गहलोत का  सिरदर्द कम करना है। राजस्थान में इसी साल चुनाव होने हैं ऐसे में वहां गुरूदास कामत को भेजा गया है। यह वही महाशय है जो कैबीनेट बर्थ न मिलने से कोपभवन में चले गए थे। कल बनते ही इन्होनें सोनिया चालीसा शुरू कर दी। सीपी जोशी भी राजस्थान के मुख्यमंत्री पद को पाने के लिए ललायित रहते हैं वही  हाल दिल्ली में अजय माकन का है। तीसरा बड़ा नाम है अंबिका सोनी का। सब कह रहे थे की सूचना और  प्रसारण मंत्रालय से इस्तीफा देकर वह संगठन में आऐंगी। मगर अब उनकी ताजपोशी से साफ हो गया की  वह सोनिया की विश्वास पात्रों में से एक हैं। शकील अहमद को महासचिव बनाकर धार्मिक समीकरणों को साधा  गया है। मोहन प्रकाश को भी मध्यप्रदेश और महाराष्ट की जिम्मेदारी सौंपी गई। इनमें ज्यादातरों में एक खास बात है। वह यह की यह एक अदद चुनाव नही जीत सकते। मगर कुछ सवाल। गुलाम नबी आजाद क्या  कमजोर हुए है? लगता है आलाकमान आंध्र में उनके कार्य से खुश नही हैं। रही बात मुकुल वासनिक की  तो बिहार में पहले ही वह कांग्रेस की लुटिया डूबों चुके है। इस टीम का दम खम आने वाले विधानसभा चुनाव में दिल्ली छत्तीसढ़ राजस्थान मध्यप्रदेश और मिजोरम में दिख जाएगा। मिशन 2014 तो बाद की बात है।

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