गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

आप्रेशन तापमान


तरक्की के नाम पर हमने जिस तरह पर्यायवरण केा अंधाधुंध तरीके से कुचला है उसके नतीजे आने शुरू हो गये है। हवा में कार्बन डाई आकसाइड बढी है जिससे कई जीव जंतुओं की जिंदगी खतरे में पड़ गई है। कई बीमारियाॅ इंसानों को भी अपनी  चपेट में लेने लगी है। गलेषियर पिघल रहे है और विस्थापन का डर सताने लगा है। पूरे विष्व में आज गलोबल वार्मिंग की धमक है। एक जिम्मेदार देष होने के नाते भारत ने इस समस्या से निपटने की कोशिशें तेज कर दी है। प्रधानमंत्री मनमेाहन सिंह ने जलवायु परिवर्तन से प्रभाव से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना पेष की है। जिसमें सुर्य उर्जा के प्रयोग केा बढावा, जीवों के लिए अनुकूल पर्यायवरण का निर्माण, गलेषियर को पिघलने से रोकने, कृषि को मौसमी आधार पर लचीला बनाने और जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन पर जोर दिया गया है।। भारत चाहता है कि प्राकृतिक स्रोतो का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर पर्यायवरण केा प्रदूषण मुक्त बनाया जाए। क्योंकि प्रदूषण का तापमान को बड़ाने में बड़ा हाथ है। हालांकि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कम करने का कोई प्रस्ताव नही है। पूरे विष्व के लिए जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौति है जिससे निपटने की ज्यादा जिम्मेदारी उन विकसित देशों की है जो की इस समस्या के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। मसलन अमेरिका जैसा प्रदूषित मुल्क इससे लड़ने के लिए आगे आए न की विकासशील मुल्कों को कानून पेंच में फंसाने की कोशिश करे। प्रकृति का इशारा साफ है। समय रहते चेत जाओ वर्ना महाविनाष के लिए तैयार रहो। एक जिम्मेदार देष हेाने के नाते भारत ने अपनी नीति स्पष्ट कर दी है। अब जिम्मेदारी उनकी हैं,जो इसके के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हंै। साथ ही जिम्मेदारी हमारी भी। क्योंकि जनसहभागिता और जागरूकता के सहारे छोटी छोटी बातों का ध्यान रख हम इससे लड़ने में अपना योगदान भी दे सकते हैं

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