रविवार, 20 फ़रवरी 2011

कैसे चले संसद

बजट सत्र कल से शुरू है। हर हिन्दुस्तानी की अपेक्षा है की सदन चले, खासकर प्रश्नकाल। संसद में इन दिनों प्रष्नकाल तमाशा बनकर रह गया है। सरकार  शीतकालीन सत्र का पहला दिन अगर छोड़ दिया जाए तो पूरे सत्र में सिर्फ हंगामा हुआ। सत्तापक्ष और विपक्ष जेपीसी गठन की मांग को लेकड़ भिड़े रहे। हालांकि सरकार जेपीसी के गठन के लिए अब तैयार हो चुकी है जो दो महिने पहले कह रही थी कि इसकी कोई जरूरत नही है। सवाल यह है कि इन दो महिनों में क्या बदला। देश चाहता है कि चाहे मुददा भष्टाचार का हो या महंगाई से जुड़ा हुआ। संसद को इस पर सार्थक बहस कर सर्वमान्य हल तलाश्ना होगा। देश की जनता जानती है कि राजनीति में दूध का धुला कोई नही है। सब मौके की तलाश में रहते हैं। आखिर क्यों नेता करोड़ों रूपया बहाकर चुनाव जीतकर आते है। इसलिए की देश की सेवा करनी है या इसलिए की मेवा कमाने का आज इससे अच्छा जरिया कोई नही है। ऐसे लोगों की संसदीय कार्यवाही में कोई रूची नही होती। क्या निजि सरोकार आम आदमी के सरोकार से ज्यादा भारी होता है। कमसे से कम आज के हालात में तो ऐसा बिलकुल नही दिखायी देता। संसदीय कार्यवाही की अपनी एक गरीमा है। जनप्रतिनिधि जब मुददों पर बहस करते है तो सुनने में अच्छा लगता है। सरकार को कठघरे में खड़ा करते है। सरकार को उसकी जिम्मेदारी का अहसास कराते हैं। मसलन प्रश्नकाल को ही ले लीजिए। संसद की कार्यवाही में प्रष्नकाल का बड़ा महत्व है। यह सांसदों के पास मौजूद ऐसा हथियार है जिसके सहारे सांसद किसी भी मंत्रालय की पोल पट्टी खोल सकते हैं।  आए दिन सदन में हगामा आम बात हो गई है। लोकसभा अध्यक्ष की बात को इस कान से सुनों, उस कान से निकालों आम बात हो गई है। ऐसा लगता है की सदन को चलाने में किसी को कोई दिलचस्पी नही है। साल में सदन को 100 दिन चलाने का प्रवचन हर कोई करता है। मगर इससे आधे दिन भी ईमानदारी से राजनीतिक दल अगर काम करे तो देश को एक नई दिशा मिलेगी। इस समय जनता घोटालों से त्रस्त है। हर दिन एक नया घोटला सामने आ रहा है। इससे देश का माहौल सुधरने के बजाय बिगड़ रहा है। राजनीतिक दलों खासकर सरकार को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि हालातों को कैसे ठीक किया जाए। इसके लिए संसद से बड़ा और कोई मंच नही है। हम आशा करतें है वर्तमान माहौल में भरी इस निरसता के भंवर से निकलने का रास्ता यह संसद जरूर निकालेगी। बहरहाल सबकी नजर आने वाले आम बजट पर है। देखना दिलचस्प होगा की क्या बजठ सर्वसमावेशी विकास के सिद्धान्त पर खरा उतरेगा।

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