रविवार, 20 नवंबर 2011

कांग्रेस का फील बैड फैक्टर


लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का अंकाड़ा जब 200 को पार कर गया तो पार्टी में हर कोई फूले नही समा रहा था। कोई इसे सोनिया, राहुल का करिश्मा बताते नही थक रहा था तो कोई इसका सेहरा मिस्टर क्लीन के सिर बांध रहा था। तो कोई कह रहा था कि कांग्रेसियों की नैया नरेगा और किसान की कर्ज माफी जैसी योजनाओं ने लगा दी। वैसे देख जाए तो 15वें लोकसभा चुनाव ने सबकों चैंकाया भी। खासकर आंध्रप्रदेश में मिली 33 लोकसभा सीटें। इसके अलावा दिल्ली और उत्तराखंड में मिली एकतरफा जीत। ऊपर से यूपी के फैसले ने तो मानों मन की मुराद पूरी कर दी। यह कांग्रेस का फीलगुड फैक्टर का दौर था। प्रधानमंत्री ने मंत्रीमंडल के सहयोगियों को कह दिया की पहले 100 दिन के कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करें और फिर रिपोर्ट कार्ड पेश करें। सारे मंत्री इसी पर लग गए। कोई शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की बात कर रहा था तो कोई एक दिन में 20 किलोमीटर सड़के बनाने की। किसी ने गो और नो गो एरिया का ऐसा पेंच फंसाया के दूसरे सहयोगियों की जान में आफत बन आई। माहौल ऐसा बना गया कि मानों कांगे्रसी दशकों से चली आ रही तकलीफों को 100 दिन में दूर कर देंगे। बहरहाल जनता यह सब देख रही थी। यही वह दौर था जब खाद्य आधारित महंगाई अपने चरम पर थी। आवश्यक चीजों के दाम आसमान छू रहे थे। सरकार आने वाले समय में दाम कम होने की भविष्यवाणी में मषगूल थी। इसके बाद अचानक एक अखबार ने खबर प्रकाशित की कि केन्द्र सरकार के दो मंत्री होटल में रूकते हैं और बिल करोड़ो में पहुंच गया है। ध्यान रहे यह 100 दिन के पहले की उपलब्धि है। इसके पास कांग्रेसियों के बचत का नाटक शुरू हुआ। बिजनेस क्लास की जगह इकोनामी क्लास में सफर कर उदाहरण पेश किए जाने लगे। ऐसा लग रहा था की हिन्दुस्तान की सारी फिजूलखर्ची रूक गई है। मगर एक साहब को यह सब पसन्द नही आया। भला वो भी कब तक नाटक करते, कह दिया इकोनामी क्लास कैटल क्लास है। फिर नाम आ गया आइपीएल में। आगे क्या हुआ आप जानते है। साहब को कुर्सी गंवानी पड़ी। सनद रहे की महंगाई से जनता को कहीं कोई राहत मिलती नही दिखाई दे रही थी। इस मोर्चे पर जनता के पास विश्वास करने लायक केवल भविष्यवाणियां थी। किसी तरह 100 दिन खत्म हुए। लम्बे चैड़े वादों का कुछ नही हो पाया। खैर इसमें किसी को हैरानी नही हुई। पब्लिक जानती थी कि यह कांग्रसियों का अतिआत्मविश्वास है। कांग्रेस के लिए सबसे दुखी समाचार आंध्रप्रदेश से आया। आंध्र प्रदेष में करिष्माई नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी की मौत हो चुकी थी। इसके बाद यहां लगभग मृत हो चुके तेलांगाना मुददे ने जो जोर पकड़ा उसने सरकार की चूलें हिला दी। सरकार के तमाम कोशिशें बेकार गई। मामला दबाने के लिए श्रीकृष्णा समिति का गठन किया गया। इस समिति ने भी 6 सुझाव सुझाकर अपने कर्मों की इतिश्री कर ली। कहा जाता है कि समिति ने साथ ही एक गोपनीय रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी जिसमें इस हालत से निपटने के लिए जरूरी बातें की गई थी। बहरहाल यह रिपोर्ट सार्वजनिक नही हो पाई। इस बीच मीडिया राष्टमंडल खेलों की तैयारी के पीछे हाथ धोकर  पड़ गया। भ्रष्टाचार के कई सीन सामने आए। नतीजतन इस खेल के सबसे बड़े खिलाड़ी कलामाड़ी साहब तिहाड़ की रोटी तोड़ रहे हैं। उनका साथ दे रहें है उनके सखा ललित भनोट। मामल विचाराधीन है। मगर इस प्रकरण ने सरकार की जमकर फजीहत जरूर कर दी। वो तो भला हो खिलाड़ियों का जिन्होने अच्छा प्रदर्शन कर लाज बचा दी। इधर एक के बाद एक रेल हादसों की संख्या में तेजी से बढोत्तरी हुई। तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी रेल भवन के बजाया पश्चिम बंगाल के चुनाव के लेकर मस्त थी। सरकार को अपनी नक्सल नीति के चलते भी विरोध का सामना घर और बाहर दोनों ओर से करना पड़ा। खासकर कुछ बड़े हादसों के चलते। बिहार में एकला चलो का नारा फ्लाप शो साबित हुआ। कांगे्रसियों की अतिआत्मविश्वास की चुनावी नतीजे आने के बाद हवा निकल गई। बस राहत के लिए असम के नतीजे थे। तमिलनाडू में भी अम्मा के सामने कांग्रेस डीएमके गठजोड़ पानी मांगते नजर आया। 2जी प्रकरण में सीएजी की रिपोर्ट आने के बाद तो  मानो पहाड़ ही टूट गया। राजा के खेल में सरकार ऐसी फंसी की आगे कुआ पीछे खाई की नौबत आ गई। इस खेल ने मिस्टर क्लिन को भी मुश्किल में डाल दिया। कई दिग्गज जेल की सलाखों के पीछे अपने कर्मो का हिसाब दे रहे है। जमानत देने को लेकर अदालत सख्त है। बची खुची कसर सुप्रीम कार्ट की सख्त टिप्पणीयों ने पूरी कर दी। चाहे वह सड़ते राशन मुफ्त में बांटने को लेकर हो या मुख्य सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति पर। या फिर काले धन के मामले को लेकर हो। इधर भ्रष्टाचार के खिलाफ टीम अन्ना सरकार के खिलाफ धरने में बैठ गई। जनता के अपार समर्थन ने सरकार को असमंजस में डाल दिया। रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के अनशन ने सरकार की नींद चैन सब कुछ छीन लिया। देष में पूरा माहौल अन्नामय हो गया। इस प्रकरण ने कांग्रेस पार्टी की जबरदस्त किरकिरी हुई। बची खुची कसर खुद के पार्टी के नेताओं ने पूरी कर दी। इसका असर यह हुआ की संसद को अन्ना की तीन शर्तो पर बहस कराकर प्रस्ताव पारित करना पड़ा। बहरहाल सरकार के लिए शाीतकालीन सत्र किसी अग्निपरीक्षा से कम नही है। साल खत्म होने को है मगर कांगे्रस की मुश्किल कम होने काम नाम नही ले रही है। मंत्रियों की अंर्तकलह खुल कर सामने आ गई है। प्रणब चिदंबरम प्रकरण इसका जीता जागता उदाहरण है। डीएमके डरा रहा है, ममता धमका रही है। सुप्रीम कोर्ट रूला रहा है और विपक्ष चिड़ा रहा है। ग्रोथ की फंडा का धीमा पड़ते जा रहा है। आंध्रप्रदेश का हाल क्या होगा। नही मालूम। पार्टी टूटने के कगार में है। आगे 2012 में मिषन उत्तरप्रदेष मे अच्छा प्रदर्शन पार्टी के लिए बेहद जरूरी है। यहां चुनाव की कमान खुद कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के हाथों में है। मगर उनके तरकष में तीर कुछ नही। बस लेदेकर युवराज बहनजी को खरी खोटी सुनाने में जरा भी कंजूसी नही कर रहें है। केन्द्रीय योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के मुददे को जोरषोर  से उठा रहें हैं। अपने मंत्रियों से बहनजी को पत्र लिखवा रहे है। बहनजी भी नहले में दहला साबित हो रही हैं। उत्तरपदेश को चार हिस्सों में बांटने का मास्टर स्टोक लगा दिया है। इसके अलावा 2012 उत्तराखंड, पंजाब हिमांचल गुजरात गोवा और मणीपुर के चुनाव भी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है। कांग्रेसियों के लिए हालात सामान्य नही। हम तो यही दुआ करेंगे की 2012 का सूरज इस पार्टी के लिए नया सवेरा लेकर आए।

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