शनिवार, 26 नवंबर 2011

खुदरा क्षेत्र में एफडीआई पर राजनीति


मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को कैबीनेट की हरी झंडी मिलने के बाद इसका राजनीतिक विरोध शुरू हो चुका है। वामदल और भाजपा ने सरकार को सड़क से लेकर संसद तक इस मामले में पेपर्दा करने की चेतावनी दी है। इसका अंदाजा संसद में विपक्षी तेवर को देखकर लगाया जा सकता है। सरकार के लिए मुश्किल विपक्षी दल ही नही बल्कि  सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस भी है जिसको सरकार का यह कदम नागवार गुजरा है। लिहाजा आगामी चुनावों के मददेनजर सरकार का इस मुददे पर  घिरना तय है। मगर सवाल यह उठता है कि यह महज एक राजनीतिक विरोध है या वाकई इस कदम से इस देश के किसान, खुदरा कारोबारी और रेहड़ पट्टी वालों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी। चूंकि इसके विरोध में सबसे बड़ा तर्क यह दिया जा रहा है कि खुदरा क्षेत्र से जुड़े 4 करोड़ कारोबारी सरकार के इस कदम से तबाह हो जाऐंगे। लघु उद्योग प्रतियोगी माहौल में दम तोड़ देंगे। यह बड़ी कंपनियां आकर हमारे देश में मनमानी करेंगी। मगर किसी भी निर्णय में पहुंचने से पहले यह समझना जरूरी है कि भारत में खुदरा बाजार की क्या स्थिति है? इसका हमारी अर्थव्यवस्था में क्या योगदान है? रोजगार के क्षेत्र में यह क्या भूमिका निभाता है? क्या महंगाई को कम करने में यह कदम रामबाण साबित होगा। क्या साला होने वाली फल और सब्जियों की बर्बादी में कमी आएगी? यह ऐसे सवाल है जो हर किसी के ज़ेहन में उठ रहे होंगे। दरअसल भारत में खुदरा कारोबार वर्तमान मंे 28 बिलियन डालर का है जिसके 2020 तक 260 बिलियन डालर तक पहुंचने की उम्मीद है। मतलब इस क्षेत्र में वर्तमान से 9 गुना ज्यादा बढ़ोत्तरी होगी। साथ ही जीडीपी में इसका योगदान बढ़ेगा और  रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। आज हमारे खुदरा क्षेत्र में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि खुदरा क्षेत्र में 95 फीसदी लोग असंगठित क्षेत्र से हैं। महज 5 फीसदी लोग संगठित क्षेत्र से हैं। खुदरा क्षेत्र का 70 फीसदी कारोबार खाद्य से जुड़ा है। बस इसी को सामने रखकर विरोध में कहा जा रहा है की हमारी खाद्य सुरक्षा पर इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों का अधिपत्य हो जाएगा। मगर इसके पक्ष में भी बेशुमार तर्क है। उदाहरण के तौर पर, इससे उपभोक्ताओं को 5 से 10 फीसदी की बचत होगी। किसान को अपने उत्पाद के 20 से 30 फीसदी ज्यादा दाम मिलेंगे। 30 से 40 लाख नए रोजगार उपलब्ध होंगे। इसके अलावा अप्रत्यक्ष तौर में 40 से 60 लाख रोजगार का सृजन होगा। सरकार को इससे जुड़े ढंाचागत विकास मसलन प्रोसेसिंग, मैनूफैक्चरिंग, वितरण, डिजाइन, गुणवत्ता, कोल्ड चेन, वेयरहाउस और पैकेजिंग जैसे कामो में तेजी आएगी। इन सब वजहों की कमी के चलते सालाना 50 हजार करोड़ का नुकसान हमें उठाना पड़ता है। मसलन 16500 करोड़ का अनाज जो उत्पादन का 10 फीसदी है, बर्बाद हो जाता है। इसी तरह 15 फीसदी दालें, 30 फीसदी फल और सब्जियां और 40 फीसदी फलोरीकल्चर से जुड़े उत्पाद रखरखाव के अभाव में बर्बाद हो जाते हैं।। अगर निवेश का 50 फीसदी हिस्सा इस बुनियादी क्षेत्र को विकसित करने में लगता है जैसे की कहा गया है तो हालात में तेजी से सुधार आएगा। सरकार के मुताबिक  बैक एंड इन्फ्रास्ट्रकचर में कुल निवेष का 50 फीसदी खर्च करना अनिवार्य होगा। बहरहाल सरकार के इस फैसले से वालमार्ट, कैरीफोर, टेस्को और मेटो जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भारत में कारोबार करने का रास्ता खुल गया है। सरकार ने 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में इन रिटेल स्टोरों को खोलने की अनुमति दी है। साथ ही कुछ ठोस प्रावधान भी किए हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक देष में 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों की संख्या 53 है। इससे पहले औद्योगिक और संर्वधन विभाग द्धारा जारी चर्चा पत्र में मल्टी ब्रांड रिटेल के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की बात कही गई है। रिटेल भारत में कृषि क्षेत्र के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। 8 से 9 प्रतिशत की सालाना दर से यह क्षेत्र आगे बढ़ रहा है। इससे पहले एकल रिटेल ब्रांड में 2006 में 51 फीसदी एफडीआई को अनुमति दी थी। जिसे अब 100 फीसदी कर दिया गया है। साथ ही होलसेल में 100 फीसदी विदेशी निवेश लागू है। एक अनुमान के मुताबिक 2006 से मई 2010 तक 901 करोड़ का निवेश इस क्षेत्र में आया है। इसमें से ज्यातातर निवेश खेल से जुडे परिधानों मसलन लग्जरी समान जेवरात और हैंडबैग में आया है। आज सरकार को यह स्थिति भी स्पष्ट करनी चाहिए कि छोटे कारोबारियों और रेहडी पटटी वालों पर इसका क्या प्रभाव  होगा? क्या वालमार्टऔर कैरीफोर जैसी दिग्गज कंपनियां जो भारत के बाजार में प्रवेश के लिए ललायित हंै,उतने लोगों को रोजगार दे पायेंगी जितने लोग असंगठित खुदरा कारोबार से जुडे़ हैं? इस बात में कितना दम है कि किसान और ग्राहकों का इसका सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा? क्या सरकार के इस कदम थोक और फुटकर दामों में अन्तर  पाटने में हमें कितनी मदद मिलेगी? क्या महंगाई की रफतार को थामने में यह कदम कितना मदद करेगा? और आखिर में सबसे अहम भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पडे़गा? सच्चाई यह है कि सिंगल ब्रांड में इन नियमों का पालन नही हो रहा है। भारत में रिटेल में जीडीपी की हिस्सेदारी 10 फीसदी के आसपास है जबकि चीन में यह 8 फीसदी, ब्राजील में 6 फीसदी और अमेरिका में 10 फीसदी है। भारत में तकरीब 1.5 करोड़ रिटेल स्टोर है जिनमें प्रमुख है पैन्टलून, सौपर्स स्टाॅप ,स्पैंसर, हाइपर सीटी, लाइफस्टाइल, सुभिक्षा और रिलायंस।  वाणिज्य मंत्रालय से जुड़ी स्थाई समिति ने मल्टी ब्रांड में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर असहमति जताई थी। इस समिति ने सरकार से इस कार्य को करवाने के लिए देश के निजि क्षेत्र को षामिल करने का सुझाव दिया था। मगर सरकार ने इस सुझाव को नकार दिया था। खुदरा व्यापार राज्य का विषय है। लिहाज इस मामले में हरी राज्यों की भी रही झंरी जरूरी है। इसलिए देखना दिलचस्प होगा की बीजेपी ़द्धारा शासित राज्य में इन दिग्गज कंपनियों का प्रवेश होता है या नही। इसमें कोई दो राय नही भारत और चीन दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार है ऐसे में यह कंपनियां यहां आने के लिए लम्बे समय से प्रयासरत थी। मगर आशंकाओं के सहारे भविष्य की आवश्यताओं को नकारना बुद्धिमानी नही। आज इस क्षेत्र में निवेश की जरूरत है। खुदरा क्षेत्र में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है। महंगाई से आम आदमी को राहत देने की जरूरत है। हमारे देश खाद्य सुरक्षा की अहमियत से परिचित हैं। कोई भी सरकार चाहे फिर वह किसी भी दल की हो, अपने नागरिकों का अहित नही चाहेगी। वैसे भी यह मामला 16 साल से अटका पड़ा था। 5 राज्यों में चुनाव से पहले सरकार का यह कदम महत्वपूर्ण है। बहरहाल धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था के लिए यह कदम एक अच्छी खबर है।

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