गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

लोकपाल की लड़ाई


गुरूवार को राज्यसभा में वही हुआ जिसका अंदेशा पहले से ही लगाया जा रहा था। लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 2011 मैराथन चर्चा के बाद पारित नही हो सका था। आंकड़े जुटाने में नकाम रही सरकार को वोटिंग पर  फैसला टालना पड़ा। सरकार के मुताबिक इस चर्चा में जो 187 संशोधन आऐं है उसके अध्ययन के बाद वह बजट सत्र में दोबारा इस विधेयक को लाएगी। झटका उनके लिए था जो इन दिन तीनों में टकटकी लगाए संसद की ओर निहार रहे थे। हर आमोखास में चर्चा का यही मुददा था। क्या यह संसद एक मजबूत और सशक्त लोकपाल बनाने का इतिहास रचेगी? क्या 43 साल का इंतजार खत्म होगा? क्या अब तक का किया हुआ यह 10 वा प्रयास सफल रंग लाएगा? क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ इस देष में एक लोकपाल आ पाएगा? मगर आधी रात तक संसद पर नजरें गढ़ाये बैठी नता को मिली तो सिर्फ और सिर्फ मायूसी। इससे पहले लोकसभा में यह विधेयक पारित तो हो गया मगर लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिलाने में सरकार नाकामयाब रही। दरअसल संविधान संशोधन के लिए जरूरी आंकड़े सरकार नही जुटा पाई। बहरहाल अब राजनेता इसके लिए एक दूसरे को कोस रहें है।अब सबकी नजरें एक बार फिर अन्ना हजारे की तरफ है।

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