रविवार, 5 मई 2013

संसद में हंगामा

स्ंसद में आए दिन हंगामा होना कोई नही बात नही है। हंगामा आज सियासी हथियार बन गया है। राजनीतिक दल इसे अपना विशेषाधिकार समझने लगे है। सदन में सांसदों के लिए कई नियम
बनाये गए हैं मसलन
नियम 1- कोई सदस्य अगर भाषण दे रहा हो तो उसमें बांधा पहंचाना नियम के खिलाफ है।
नियम दो- सांसद ऐसी कोई पुस्तक समाचार पत्र या पत्र नही पडे़गा जिसका सभा की कार्यवाही से सम्बन्ध न हो।
नियम तीन- सभा में  नारे लगाना नियम विरूद है।
नियम चार- सदन में प्रवेश और निकलने के वक्त अध्यक्ष की पीठ की तरफ नमन करेगा।
नियम पांच - सभा में अगर कोई बोल रहा हो तो शान्त रहना चाहिए।
नियम 6- भाषण देने वाले सदस्यों के बीच से नही गुजरेगा
नियम 7- अपना भाषण तुरन्त समाप्त करने के बाद बाहर नही जाएगा।
नियम 8- हमेश अध्यक्ष को ही संबोधित करेगा।
सदन की कार्यवाही में रूकावट नही डालेगा। लेकिन सांसद अपने ही बनाए नियमों को तारतार कर रहें हैं।
इन सारे नियमों का लब्बोलुआब को कुछ यूं समझ लें कि सदन में अध्यक्ष के आदेश के बिना पत्ता भी नही हिलता।ऐसे कई नियम मौजूद है लेकिन मानने वाला कोई नही। नियमों की अनदेखी संसदीय संकट
की ओर इशारा कर रही है। लिहाजा समय रहते इसमें पूर्ण विराम लगाना आवश्यक हो गया है।

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