रविवार, 5 मई 2013

संसद


संसद लोकतंत्र का पहरेदार, आवाम की आस्था का मन्दिर देश की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था, देश के विकास की नींव यही रखी जाती है। मुल्क के कोने कोने से चुने हुए प्रतिनीधि यहां अपनी आवाज बुलन्द करते है। जनता के जुडे मुददों पर सार्थक बहस इसी जगह होती है। कानून बनाने की ताकत इसी संसद को है। मगर आज यहां हालात बदले बदले नजर आ रहे है। सदन में आए दिन होने वाले हो हंगामें पर अब सवाल उठना शुरू हेा गया है। कि आखिर किसके लिए है संसद। क्या है इसका उददेश्य। आखिर में सबसे महत्वपूर्ण कि संसद में विरोध की क्या सीमा होनी चाहिए? आज जहां बहस का स्तर गिर रहा है वही
सांसद आपसी टोकाटोकी में ज्यादा मषगुल दिखाई देते

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