रविवार, 5 मई 2013

चुनाव सुधार


चुनाव सुधार को लेकर हमारे देष में बहस कोई नई नही है। मगर बहस नतीजे तक पहंचने के बजाय सिमट कर रह गई है। मामले की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि 27 अक्टूबर 2006 को मुख्य चुनाव आयुक्त केा पत्र लिखकर कहा कि जनप्रतिनिधत्व कानून 1951 में अगर संषोधन नही किया गया तो वह दिन दूर नही जब दाउद इब्राहिम और अबू सलेम जैस लोग संसद और विधानसभाओं में  दिखेंगे। चुनाव लडने के लिए आज मैन मनी और मसल पावर की जरूरत है। अब तो राजनीतिक दल भी इससे परहेज नही कर रहे है। हर हालत में जीत करने की चाहत में वो बाहुबलियेां को भी टिकट द रहे है। हालात की सुधार की हिमायत करने में अपनी हामी जरूर भर रहे है। चुनाव सुधार केा लेकर दिनेष गोस्वामी कमिटि अपनी सिफारिषें पहले ही दे चुकी है। इसके अलावा इंद्रजीत गुप्ता कमिटि चुनाव के दौरान होने वाले खर्च पर सिफारिष मौजूद है। ला कमीषन की चुनाव सुधार को लेकर अपनी सिफारिष दे चुका है। मगरअब तक कुछ खास नही हो पाया
है। आज ज्यादातर विशेषज्ञ सबसे ज्यादा जोर चुनाव सुधार पर दे रहे है। क्यों इसके बिना इस व्यवस्था को पटरी पर लाना आसान नही होगा।

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