शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

सपना मीडिया और सरकार

भारतीय मीडिया खासकर हिन्दी मीडिया ने सोने की खबर को जिस तरह से लयिा है वह हैरान कर देने वाला है।
बाबा शोभन सरकार ने 1000 टन सोने का सपना देखा। सरकार ने इसपर विश्वास कर लिया। बकायदा एएसआई को बुलाकार खुदाई भी शुरू कर दी है। मगर खुदाई के लिए खुरपी का इस्तेमाल किया जाएगा ताकि जो अवशेष मिलें वह तहस नहस न हो जाऐं। मगर केन्द्र और राज्य की सरकार की मंशा पर कई सवाल उठ रहें
हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मानें तो वह तो चाहते हैं कि यूपी के हर जिले से सोना
निकले। इसके लिए वह बकायदा शुभकामनाऐं भी दे रहें हैं। इससे मालूम चलता है की सोने की मौजूदगी को लेकर वह उनको खुद विश्वास नही। वहीं उनके सांसद नरेश अग्रवाल सोने में राज्य सरकार की हिस्सेदारी की वकालत कर रहें है। एएसआई को केन्द्र सरकार ने धीरे धीरे खजाने को खोदने का आदेश दिए हैं। यह किला राजा राव राम बक्श का है जिन्हें 1857 में अग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया। सपना यहां रहने वाले बाबा शोभन सरकार ने देखा है। उनके चेलों की मानें तो यह सपना सच होगा। बतौर शोभन सरकार भारत की गिरती अर्थव्यवस्था को इससे गति मिलेगी। मगर इस पूरे प्रकरण ने कई सवाल खड़े हैं। पहला क्या शोभन सरकार प्रसिद्धि पाने के लिए तो यह सब नहीं कर रहें हैं। ठीक वैसे की जैसे कई साल पहले कंुजीलाल ने अपने मौत की भविष्यवाणी की थी। दूसरा एक बाबा को सपने को केन्द्र और राज्य सरकार क्यों इतनी गंभीरता से ले रही है जबकि सरकार अंधविश्वास को रोकने के लिए जागरूकता की बात करती है।तीसरा अगर सरकार इस सपने को लेकर इतनी संजीदा है तो खुदाई 1 दिन में क्यों नहीं? दरअसल उत्तप्रदेश और केन्द्र सरकार की इसमें मिलिभगत दिखाई देती है। आज यानि 18 अक्टूबर को वीएचपी की संकल्प यात्रा है और राज्य सरकार ने इस यात्रा को गैरकानूनी घोषित किया हुआ है। दूसरा कल यानि 19 अक्टूबर को कानपुर में नरेन्द्र मोदी की रैली है। केन्द्र और यूपी सरकार को बैठे बठाये इस रैली से बनने वाले माहौल को कम करने का मौका मिल गया।
तीसरा केन्द्र में कोयला आवंटन मामले को लेकर पूर्व कोयला सचिव के प्रधानमंत्री को घसीटने के बाद कांग्रेस
की मुश्किल और बढ़ गई है। ऐसे में मीडिया का ध्यान बांटने के लिए सोच समझकर यह मिलिभगत है।
इन सबके के बीच मान लो किसी के सपने में आ जाए की देश में शीर्ष बड़े नेताओं के पैसे स्विस बैंक में है
तो क्या सरकार इसकी जांच करवाएगी। ऐसा लगता है की हिन्दी मीडिया की दुखती रग भी सरकारें पहचानने लगी है। प्राकृतिक आपदा में बहुगुणा 24 करोड़ मीडिया में उडा देते हैं। आखिर क्यों? बाबा की बात पर सरकार इतनी गंभीर क्यों?

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