रविवार, 27 अक्तूबर 2013

कैसे मिटेगा आतंक !

पटना में हुए सिलसिलेवार धमाकों ने एक बार फिर साफ कर दिया कि पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों से ज्यादा तेज़ चाल आतंकियों की है। पटना जहां एक दिन पहले राष्ट्रपति आए। पटना जहां 6 महिने पहले से ही तय था कि नरेन्द्र मोदी की हुंकार रैली होनी है। उसके बावजूद सुरक्षा मानकों को गंभीरता से लिया गया। 6 निर्दोष मारे गए, 80 से ज्यादा घायल हुए। नेताओं  ने निंदा कर दी। मुख्यमंत्री ने मुआवज़ा दे दिया। गृहमंत्री ने एनआईए और एसपीजी की टीम भेज दी। बस सबने अपने कर्मो की इतिश्री कर ली। 1 अरब 25 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में इतनी कमजोर आंतरिक सुरक्षा के लिए कौन जिम्मेदार है। अमेरिका में आतंकवाद पर राजनीति नही होती। 9/11 के बाद उन्होने दुनिया को दिखाया की आतंक से कैसे निपटा जा  सकता है। पाकिस्तान के घर में घुसकर अपने नम्बर एक दुश्मन लादेन को मार गिराया। हम 1989 के बाद जम्मू कश्मीर में आतंकवाद से जूझ रहें हैं। हम 1993 से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जूझ रहें हैं। वह हमारे ही लोगों को हमारे ही खिलाफ एक औजार के रूप में इस्तेमाल कर रहें है। हम नपुंसकों की तरह निंदा करने में व्यस्त है। अगर मरना ही है। एक बाद मरो। हर रोज मरना क्यों। क्या हम इतने शक्तिशाली नही की पाकिस्तान की आतंक की फैक्ट्री को निस्तोनाबूत कर दें। क्या हम इतने कमजोर हैं कि एक हाफिज सईद को पकड़ने के लिए अमेरिका से हाथ जोड़ते है। भारत पहला ऐसा देश है जो आतंकवाद का शिकार है और आतंकी देश यानि पाकिस्तान को सूबूत देता है कि आप हमारे यहां आतंकवाद फैलाते हो। क्या हमारे एनएसजी के कमांडों में इतनी शक्ति नही कि जब चाहें उसे उसी की माद से उठा ला सकते हैं। अब हाथ जोड़ना निंदा करना बंद करो। अब वक्त जवाब देने का है। उनकी हस्ती मिटादो जो भारत को आंख दिखाते हैं।
मित्रों इतिहास गवाह है
क्षमा क्षोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दन्तहीन, विषहरित विनीत सरल हो।
आप सभी मित्रों से आशा है कि आप भी अपनी सोच को सार्वजनिक करें।

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