सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

प्रोसेसिंग क्षेत्र का सच?

राहुल गांधी जी उत्तप्रदेश को प्रोसेसिंग का हब बनाने चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने अमेठी यानि अपने संसदीय क्षेत्र को चुना। वैसे भी विधानसभा चुनाव में अमेठी में कांग्रेसी विधायकों का बुरा हाल हुआ। अब राहुल और सोनिया गांधी को चुनावी चिंता सताने लगी है। मगर इसे आप जो भी मानें राजनीति में असल मुददे हमेशा भटक जाते हैं? हमें क्या यह जानने का अधिकार नही कि देश में प्रोससिंग का क्या स्थिति है। भारत जैसा विशाल देश इस क्षेत्र में कहां टिकता है? क्यों इतने सालों के बाद भी आज तक हम पीछे हैं। आइये समझते हैं कि क्या है प्रोसेंसिंग क्षेत्र के हालात और वाकई यह किसान के जीवन में कैसे खुशहाली ला सकता है। कैसे यह रोजगार को बढ़ावा देगा और महिलाओं के लिए खासकर फायदेमंद हो सकता है। मगर एक प्रोसेंसिंग प्लांट अमेठी में लग गया और देश इस क्षेत्र में तरक्की कर लेगा यह सोचना बेमानी होगा। इसके लिए दीर्घकालिक रणनीति जो है मगर बाकियों की तरह क्रियान्वयन के लिए जूझ रही है। भारत विश्व में प्रमुख खाद्य उत्पादक देश है। दूध दालों और चाय का विश्व में सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में होता है।
जबकि फलों और सब्जियों के मामले में हमारा स्थान दूसरा है। मगर दुनिया के खाद्य बाजार में हमारी हिस्सेदारी 2 प्रतिशत से भी कम है। हमारे देश में खाद्य प्रसंस्करण का स्तर 6 फीसदी से नीचे है। वही विकसित दशों में यह स्तर 60 से 80 फीसदी तक है। यहां तक की एशियाई और लातिन अमेरिकी दशों में यह 30 प्रतिशत से ज्यादा है। हालांकि सरकार अब इस उघोग की दशा और दिषा सुधारने में जुट गई है। इसी को ध्यान में रखकर 2005 में विजन 2015 नामक एक दस्तावेज तैयार किया गया है। इसके तहत जल्द खराब होने वाले खाद्य पदार्थो के प्रसंस्करण का स्तर 6 से 20 फीसदी करने और मूल्य संवर्धन को 20 से 35 फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। जानकार मानते है कि अगर ऐसा करने में हम सफल होते है तो विश्व
खाद्य बाजार में भारत की हिस्सेदारी 2 से बढकर तीन प्रतिशत हो जायेगी। बहरहाल 11 वीं पंचवर्षीय योजना में सरकार ने कुछ बड़े कदम उठाये हैं। इनमें मेगा फूड पार्क, शीत नियंत्रण श्रंखला, मूल्य संवर्धन तथा बूचड़खानों के आुधनिकीकरण जैसे कदम अहम है। मगर एक आंकड़े के मुताबिक वर्तमान में 50 हजार करोड़ की फल और सब्जियां सालाना बर्बाद हो जाती है। बहरहाल खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की ध्यान में रखकर मंत्रालय ने एक विज़न 2015 नामक दस्तावेज तैयार किया है। इस दस्तावेज के तहत 2015 तक इस क्षेत्र में 1 लाख करोड़ के निवेष की बात कही कई है। इसमें 45 हजार करोड़ रूपये निजि क्षेत्र से आने की बात कही है। साथ ही 50 हजार करोड़ का निवेष 2012 के अंत तक आयेगा। इस क्षेत्र में रोजगार की भी अभूतपूर्व संभावनाऐं हैं। जानकारों के मुताबिक अगर इस क्षेत्र में 1 करोड़ का निवेश होता है तो 18 लोंगों को प्रत्यक्ष रोजगार और 36 लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा । बहरहाल सरकार सरकार सामान्य क्षेत्र के लिए 50 लाख तक के उद्योग के लिए 25 फीसदी सब्सिडी और दुर्लभ क्षेत्रों के लिए 33 फीसदी सब्सिडी दे रही है। जानकार कि मानें तो इससे किसान की आय में भी बढोत्तरी होगी। मगर इसके लिए काम करने वाला चाहिए। चुनावों से पहले सपने हर कोई दिखाता है। फिर पांच साल बात आता है।यह भी लोकतंत्र की खूबसूरती है। शायद इसिलिए लोहिया ने कहा होगा, जिंदा कौमें 5 साल तक इंतजार नही करतीं?

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