सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

तीसरे मोर्चे का राग

देश में तीसरे मोर्चे का राग नेताओं ने फिर अलापना शुरू कर दिया है। बीजेपी पहले ही इसे बरोजगार नेताओं का जमावड़ा बता चुकी है और इतिहास भारत में तीसरे मोर्चे की किसी भी संभावना को खारिज करता है। तो फिर राजनेता तीसरेमोर्चे का ख्याली पुलाव क्यों बनाने में समय गंवाते हैं। क्या मायावती अपने जीते जी मुलायम को मुख्यमंत्री बनने देंगी? क्या वामदल ममता को मुख्यमंत्री बनाएगें ? क्या डीएमके और एआइडीएमके कभी साथ साथ आ सकते हैं? नीतीश की संभावना को लालू बिगाड़ने में कोई कोर कसर बाकीं नही छोड़ेगे। अब रही बात नवीन पटनायक की या चंद्रबाबू नायडू की तो इन्हें बाहर से समर्थन कौन देगा। हां प्रधानमंत्री गैर यूपीए और गैर एनडीए का बन सकता है मगर इन्हें या बीजेपी बाहर से समर्थन करे या कांग्रेस। मगर बाहर से समर्थन करने में इन दोनों दलों का रिकार्ड बेहद खराब है। गठबंधन की राजनीति के माइबाप यह दोनों ही दल है। मगर दोनों दिशाहीन और अरोप प्रत्यारोप की राजनीति करने के अलावा कुछ नही जानते। ऐसे में बार बार तीसरे मोर्चे का राग अलापना जनता की आंखों में धूल फांकने से ज्यादा कुछ नही। यह तय है कि आने वाले चुनाव में भी खिचड़ी सरकार बनेगी। कोई यह कहते कि मेरे आने से सबकुछ बदल जाएगा तो हम एक कपोर कल्पना में जी रहें है। मैं फिर कहता हूं समाज का निर्माण हम करते है। इसलिए गांधी जी के उस बयान की यहां महत्वता बढ़ जाती है। विश्व में बदलाव के चिन्तन का रास्ता आप से होकर गुजरता है। यानि समस्याऐं हमने पैदा की हैं इसे ठीक करने का बीड़ा भी हमें ही उठाना होगा। पहला दूसरा तीसरा या चैथ मोर्चा कुछ नही कर सकता। यह देश सुधारों की बयार का राह देख रहा है मगर उसका रास्ता चुनाव सुधार से होकर निकलता है। इन सुधारों को नेताओं को अमलीजामा पहनाना है मगर अपनी
दुकानदारी को खुद भला ताला कौन लगाएगा। ऐसे में एक मात्र रास्ता जनता की शक्ति है। यह शक्तिपूंज जब तक उठ खड़ा नही होगा, कुछ नही होने वाला। यकिन मानिए आप चिल्ला- चिल्ला कर थक जाऐंगे मगर इनकी यानि संसद के कानों में जूं तक नही रेंगने वाली।

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