गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

स्वास्थ्यवाणी

भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र का 80 फीसदी हिस्सा निजी हाथों में है। महज 20 फीसदी हिस्सा सरकार के जिम्मे है। इस 20 फीसदी में भी 80 फीसदी राज्य सरकार के नीचे आता है। यही कारण है कि बार बार कहा जाता है की स्वस्थ्य क्षेत्र में राज्यों को भी अपना बजट आवंटन बडाना होगा। केवल केन्द्र सरकार के आवंटन बडाने से कुछ नही होगा। दुनिया में आबादी में हमारी हिस्सेदारी 16 फीसदी के आसपास है, मगर बीमारी में हमारा योगदान 20 फीसदी से ज्यादा है।
स्वास्थ्य बजट
यूपीए सरकार जब 2004 में सर्वसमावेशी विकास के नारे का साथ सत्ता में आसीन हुई तो उसने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में इस बात की घोशणा की कि स्वास्थ्य क्षेत्र की तस्वीर को बदलने के लिए सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी का 2 से 3 फीसदी इस क्षेत्र में दिया जायेगा। मगर अभी तक गाड़ी 1.06 फीसदी के आसपास है। वही विश्व स्वस्थ्य संगठन के मुताबिक विकासशील देशों को जीडीपी का 5 फीसदी स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च करना चाहिए। केन्द्र सरकार की मानें तो वो इस दिशा में तेजी से आगे बड़ रही है। जरूरत है तो राज्यों के बेहतर समर्थन की। यहां यह भी बताते चलें की स्वास्थ्य क्षेत्र राज्यो ंका विशय है। 11 पंचविशZय योजना में 140135 करोड की राशि का निर्धारण किया गया है। 90558 करोड की राशि का प्रबंध किया है। जो 10वी पंचवशीZय योजना के मुकाबले 227 फीसदी ज्यादा है। इसमें से 90558 करोड़ की राशि केवल केन्द्र सरकार का महत्वकांक्षी कार्यक्रम राश्टीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के लिए है जिसमें अब तक 42000 करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके है।
मानव संसाधन की कमी
स्वस्थ्य की सबसे ज्यादा खराब तस्वीर आपको ग्रामीण क्षेत्र में दिखेगी। भौतिक सुविधाओं को मुहैया कराने में सरकार कुछ हद तक जरूर सफल रही है, जिसमें प्रमुख है उपकेन्द, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और जिला अस्पताल । मगर डाक्टर और नसोZ की भारी टोटा सरकार के माथे में बल ला देता है। हमारे देश में डाक्टर जनसंख्या अनुपात 1:1722 है। यानि 1722 आबादी पर 1 डाक्टर।।आदशZ स्थिति 1:500 की है। डब्लयूएचओं के मुताबिक डाक्टर जनसंख्या अनुपात 1:250 होना चाहिए। मगर ग्रामीण भारत में यह अनुपात तो और ज्यादा बदतर स्थिति मे है। 34000 की आबादी में 1 डाक्टर है। मौजूदा स्थिति में भारत में 8 लाख डाक्टर और 20 लाख नसोZ की कमी है।
रूरल एमबीबीएस
सरकर अब इस कमी को पूरा करने के लिए ब्ौचुलर आफ रूरल हेल्थ केयर या रूरल एमबीबीएस कोर्स पर विचार कर रह है। साढे तीन साल का यह कोर्स होगा और 6 महिने की इंटरनशिप। इसके बाद तैयार हो जायेगा एक डाक्टर । यह डाक्र सिर्फ उपकेन्द्र और प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र में तैनात होगें। हालांकि कुछ विशेशज्ञों ने इस पर ऐतराज जताया है।
स्वाथ्य में उत्तर भारत दक्षिण के मुकाबले पीछे
स्वास्थ्य के लिहाज से एक बहुत बडा अन्तर उत्तर और दक्षिण भारत में भी है। मसलन देश में तकरीबन 300 मेण्डीकल कालेजों में से 190 सिर्फ पांच राज्यों में है। मसलन बिहार की आबादी 7 करोड़ के आसपास मगर मेडीकल कालेज 9। ऐसे ही हाल झारखण्ड का है। 3 करोड़ की आबादी में 3 मेडीकल और 1 नसिंZग कालेज। इस अन्तर को पाटने की भी सख्त दरकार है।
मिलीनियम डेवलपमेंट गोल का क्या होगा।
सरकार 2012 तक मातृ मृत्यु दर को यानि एमएमआर को प्रति लाख 100 तक लाना चाहती है। जो 2007 में 254 था। शिशु मृत्यु दर को 30 तक जो 2007 में 55 था। अस्पताल में प्रसव कराने आने वाली महिलाओं की तादाद बड़ रह है। जननी सुरक्षा योजना के तहत अब तक 2 करोड़ महिलाऐं अस्पतालों में बच्चों को जन्म दे चुकी है। टीकाकरण में भी अभी रास्ता थोडा कठिन है। 2012 तक 100 फीसदी का लक्ष्य जो फिलहाल 54 फीसदी है।
डाक्टरों का शहरी प्रेम
अगर आप सोचते है कि डाक्टरी आज भी सेवा करने का एक माध्यम है तो आप गलत है। यह एक विशद्ध व्यवसाय बन गया है। ज्यादा कमाई के चक्कर में को भी डाक्टर अब गांव की ओर नही जाना चाहता। यही कारण है कि डाक्टरों की ज्यादातर आबादी शहरो में सेवाऐं प्रदान कर रही। इण्डियन मेडीकल सोसइटी के सर्वे के मुताबिक 75 फीसदी डाक्टर शहरों में काम कर रहे है। 23 फीसदी अल्प शहरी इलाकों मे और 2 फीसदी ग्रामीण इलाकों में। ऐसे में अन्दाजा लगाया जा सकता है की ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य कहां टिकता है।
प्राचीन चिक्त्सा प्रणाली पर कोई ध्यान नही।
आपने रामायण मे संजीवनी बूटी का नाम तो सुना होगा। जिसे सूंघने के बाद लक्ष्मण लम्बी मूछाZ से जाके है। आज आयुZवेदिक, होमयोपैथिक , सिद्धा और यूनानी जैसी चिकित्सा प्रणाली की तरफ को खास रूख नही है। ऐसा नही कि यह चिकित्सा प्रणाली फायदेमन्द नही है। दरअसल सवाल यह है कि इसे फायदेमन्द बनाने के लिए हम कितने गम्भीर है।
निजि अस्पतालों पर कसी जाए नकेल
जब देश की 77 फीसदी आबादी की हैसियत एक दिन में 20 रूपये से ज्यादा खर्च करने की नही है। तो क्या वह इन बडे हांिस्पटलों मेंअपना या परिजनों का इलाज कर सकता है। निजि अस्पताल इलाज की एवज में मनमाने दाम मांग रहे है। गरीब कहां से लायेगा। इसलिए इन बहुमुखी सुविधाओं से लैस अस्पतालों के उपर एक प्राधिकरण हो जो इस पर नज़र रखे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें