गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

भोजन का अधिकार

सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक जल्द लाने जा रही है। यह इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है की पहली बार बीपीएल परिवारों को भोजन का अधिकार दिया जा रहा है। सरकार गरीबी रेखा से जीवन यापन करने वाले परिवारों को प्रति माह 25 किलो चावल या गेहूं देगी। यह अनाज 3 रूपये प्रति किलों के हिसाब से दिया जायेगा। जरा सोचिए  जिस देश का वैिश्वक सूचकांक में स्थान 88 देशों में 66वा हो वहां इस कानून के लागू होने का क्या मतलब है, इसका अन्दाजा आप लगा सकते है। यह बात दीगर है कि कौन गरीब है के आंकड़ों में उलझी सरकार के लिए यह कह पाना मुिश्कल हो रहा है की सही मायने में गरीब कौन है। वो जिसे सुरेश तेन्दुलकर का अर्थशास्त्र गरीब मानता है या वो जिसे एनसी सक्सेना साहब का मनोविज्ञान गरीब मानता है या फिर वो जिसके बारे में अर्जुन सेना गुप्ता कहते है कि 77 फीसदी की हैसियत तो 20 रूपये से ज्यादा खर्च करने की है ही नही। बहरहाल मसले और भी है जो इस विधेयक से जुडे है। इस बात की भी प्रबल संभावनाऐं कि सरकार 25 किलों खाद्यान्न की सीमा बढाकर 35 किलो कर सकती है। संभावना इस बात की भी है कि सरकार तेन्दुलकर के गरीबी के आंकडों को गले लगा सकती है। क्योंकि इस रिपोर्ट को अपनाने से सरकार की सेहत मे ज्यादा असर नही पडेगा। वर्तमान में सरकार पीडीएस के माध्यम से 6 करोड 52 लाख परीवारों का पेट भरती  है। मतलब 36 करोड़ की आबादी को बीपीएल और अन्तोदय अन्न योजना के तहत सस्ता राशन मुहैया कराती है। अब अगर 1 करोड़ बड़ भी जाए तो सरकार की सेहत पर कोई खास असर नही पडने वाला। अब चुनौति गरीबों तक राशन पहुंचाने की होगी। इसलिए सरकार यह भी सुनिश्चित करना चाहती है कि जरूरत मन्दों तक इसका फायदा जरूर पहुंचे। सरकार यह भी सुनििश्चत करना चाहती है कि कौन सा ऐसा तन्त्र विकसित किया जाए ताकि इसका हाल भी लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसा न हो। लिहाज माथापच्ची इसी बात पर है कि कैसे इसे लागू किया जायेगा।  यह इस इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि इससे पहले यूपीए सरकार तीन ऐतिहासिक कानून सूचना का कानूून, रोजगार का कानून और शिक्षा का कानून लागू कर चुकी है। यानि अब परीक्षा भोजन के अधिकार कानून को लेकर है जो यूपीए के चुनावी वादों का अहम हिस्सा था। यह तो हो गई पेट भरने की बात। मगर पेट भर राशन आएगा कहां से। यानि दूसरा सवाल खाद्यान्न सुरक्षा का। मौजूदा दौर में देश विदेशों में इस बात के लिए मन्थन चल रहा है कि खाद्य सुरक्षा के मामले में आत्मनिर्भर कैसे बना जाये। कैसे खाद्यान्न की उत्पादकता बडाई जाए। हमारे देश में गेहूं चावल की उत्पादकता में सुधार जरूर हुआ है मगर यह नाकाफी है। दूसरे देशों के मुकाबले हमारी उत्पादकता  काफी कम है। जहां तक सवाल पंजाब और हरियाणा का है जिन्हें भारत की खाद्य सुरक्षा का स्तम्भ माना जाता है वहां अनाज की उत्पादकता दूसरे देशों के उत्पादन के आसपास है। इसका एक बडा कारण वहॉं सिंचाई की पर्याप्ता व्यवस्था भी है। मगर यूपी और बिहार के मामले में यह तस्वीर बिलकुल उलट जाती है। उत्पादकता के मामले में यह राज्य काफी पीछे है। यूपी में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता है 21 क्वींटल के आसपास जबकि बिहार इससे भी नीचे है। उत्पादकता कम होने के कई कारण भी है। उदाहरण के तौर पर हमारे देश में प्रति हेक्टेयर उत्पादन 3000 किलो ग्राम के आसपास है जबकि चीन में यही उत्पादन 6074 जापान 5850 और अमेरिका में 7448 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के आसपास है। इससे स्पश्ट होता है कि अभी खाद्यान्न सुरक्षा के लिहाज से हमें एक लंबी मंज़िल तय करनी है। इसका उपाय भी भारत के मेहनती किसान के पास है। पहली बार यूपीए सरकार ने यह अच्छा काम किया कि ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे कि हर कीमत पर किसान को उसकी उपज का लाभकारी मूल्य मिले। आज हम पैडी का भाव दे रहे है 1000 प्रति क्वींटल साथ ही 50 रूपये बोनस के तौर पर। वही गेहूं के लिए हम दे रहे है 1080 रूपये प्रति क्वींटल। वर्तमान में महज 24 वस्तुओं ही न्यूनतम समर्थन मल्य के दायरे में आती है। मतलब केवल 24 वस्तुओं का ही सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है। कृिश मन्त्रालय से सम्बंधित स्थाई समिति ने सरकार को ज्यादा से ज्यादा वस्तुओं को न्यूनतम समर्थन मल्य के दायरे में लाने की सिफारिश की है। इस समय सरकार कई महत्वकांक्षी कार्यक्रम चला रही है, है। जिनमें प्रमुख है राश्ट्रीय कृशि विकास योजना, राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और राश्ट्रीय बागवानी मिशन । राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत 11वीं पंचवशीZय योजना के अन्त तक चावल का उत्पादन 1 करोड़ टन, गेहूं का उत्पादन 80 लाख टन और दालों का उत्पादन 20 लाख टन करने का लक्ष्य रखा गया है। मगर अब तक के आंकडों के देखकर लगता नही की सरकार इस लक्ष्य को पूरा कर पायेगी। इसका सबसे बडा कारण है कि बीते साढे तीन सालों में जीतना आवंटन इस योजना के लिए हुआ था उसका 50 फीसदी से ज्यादा कभी खर्च नही हो पाया। दूसरी तरफ रखरखाव क अभाव में सालाना तकरीबन 60 हजार करोड़ का अनाज बेकार हो जाता है। यह बात सही है कि इस बार बजट में भण्डारण के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाने के लिए कई घोशणाऐं की गई है। हमारे देश में चावल की कई किस्में मौजूद है मगर किसान को इसकी जानकारी नही। हर जिले में कृिश विज्ञान केन्द्र खुले हुए है दुर्भाग्य यह है कि इनकी पहुंच किसानों के खेत तक नही हो पा रही है। आज हमारे पास चावल की कई किस्में मौजूद है। जरूरत है तो इसे किसानों तक पहुंंचाने की। किसान को जागरूक बनाने की। देश मे प्रथम हरित क्रान्ति के पुरोधा डां स्वामिनाथन के मुताबिक मौजूदा संसाधन के आधार पर भी हम अपनी उत्पदकता 50 फीसदी तक बड़ा सकते है। 

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