शनिवार, 24 अप्रैल 2010

आईपीएलवाणी

खेल का मैदान या पैसा कमाने का बाजार। मतलब इण्डियन प्रीमियर लीग। जैस जैसे इस खेल में व्याप्त भश्ट्राचार की परत दर परत खुल रही है। एक बहुत बड़े घोटाले की बू आ रही है। राजनेता से उधोगपति सभी इस धंधे में लिप्त है। विदेश राज्य मन्त्री शशि थरूर पहले ही अपने पद से हाथ धो चुके है। अब मुददा संसद के भीतर गूंजा तो सरकार हरकत में आ गई है। जांच एजेंसियां खरगोश चाल में आ गई है। मामले की तह में जाकर दूध का दूध और पानी का पानी करने की बात सरकार कर रही है। मगर लगता नही की जिस तरह के हाईप्रोफाइल लोगो के नाम इस खेल में आ रहे है उसे देख कर लगता नही की सच सामने आ पायेगा। संसद में बीजेपी सहित हर राजनीतिक दल ने इस प्रकरण की जांच कराने के लिए जेपीसी यानी संसद की संयुक्त समिति के गठन करने की मांग की है। ऐसा लगता नही की सरकार इस मांग को असानी से मान लेगी। क्योंकि अपने हाथ से ऐसे नाजुक मौके में रिमोर्ट कंट्रोल का चला जाना कितना नुकसान दे सकता है, सरकार इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है। रही बात आईपीएल की तो इसमें दो राय नही कि यहां सिर्फ और सिर्फ पैसे का बोलबाला है। मतलब मोटी कमाई करने का शार्टकट तरीका। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस खेल में काले धन की पैठ बडे पैमाने पर है। दुख इस बात के लेकर है की तीन साल से चले आ रहे इस खेल मे इतना सबकुछ चलता रही मगर हमारी जांच एजेसिंयों के कानों में जूं तक नही रेंगी। क्या इसकी भी जांच होगी। सरकार को इसकी भनक क्यों नही लगी। क्या उपर से लेकर नीचे तक चोर-चोर मौसेरे भाई वाली कहानी दोहराई जा रही है। दूसरी तरफ यह खेल न सिर्फ किक्रेट की आत्मा को मार रहा है बल्कि दूसरे खेल के लिए भी खतरा बनता जा रहा है। एक तरफ आईपीएल में अरबों के वारे न्यारे हो रहे है वही दूसरी तरफ राश्ट्रीय खेल के लिए संसाधन जुटाने के लाले पड रहे है। बहरहाल जांच के दायरे में, पैसा कहां से आया, किसने लगाया, किसकी कितनी भागीदारी है, कहीं काले धन का इस्तेमाल तो नही किया गया है। टैक्स कितना चुकाया और कितना चुराया गया। सेवा कर मामले में क्या स्थिति है। क्या मनोरंजन कर का भुगतान किया गया है। कुल मिलाकर सरकार के राजस्व में कितने का चूना लगा। टैक्स बचाने के गोरखधंधे की पीछे की सच्चाई जैसे अहम सवाल का जवाब मिलना बाकी है। लिहाजा सरकार को ईमानदारी से जांच पूरी कर सच सामने लाना चाहिए।

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