गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

मन्त्री जी हाज़िर हो !

लोकसभा में उर्वरक एवं रसायन मन्त्री एम के अझागिरी की अनुपस्थिति ने सरकार को मुिश्कल में डाल दिया है। लोकसभा में यह तीसरी बार है जब मन्त्री महोदय नही दिखाई दिये। सवाल भी लोगों से सीधे सरोकार रखता हुआ। सवाल था कि जिन दवाइयों पर अधिक पैसा वसूल किया जा रहा है,उसको रोकने के लिए सरकार क्या कर रही है। जीवन रक्षक दवाईयों के बड़ते दामों को नीचे लाने के लिए सरकार क्या किसी नीति पर विचार कर रही है। गैरहाजिरी का यह पहला मौका नही था। इससे पहले भी ध्यानाकशZण प्रस्ताव के दौरान भी मन्त्री जी सदन से नदारद दिखे। मसला था रसायन उर्वरकों की राज्यों में कमी और उनका सही समय पर किसानों तक नही पहुंचना, बावजूद इसके कि सरकार उर्वरकों खासकर यूरिया, डीएपी और एमओपी पर भारी सिब्सडी देती है। मगर जवाब के दौरान मन्त्री मोहदय सदन में मौजूद नही थे। बस क्या था विपक्षी पार्टियों ने हंगामा काट दिया। उनके जूनियर मन्त्री श्रीकान्त जैना को जवाब नही देने दिया। सवाल उठा की गुमुशुदा होने के पीछे कारण क्या है। यहां आपको यह बताते चले की एमके अझागिरी करूणनीधि के पुत्र है। करूणानीधि डीएमके के सर्वेसर्वा है। धृतराश्ट्र के नाम से मशहूर है और केन्द्र में गठबंधन सरकार का हिस्सा है। इस पार्टी की एक ही मूल मन्त्र है, जिसकी सत्ता उसके हम। आखिरी सांस तक कोशिश करो। सरकार की नाक में दम कर दो। गठबंधन की मजबूरियों का फायदा उठाओ। कुछ भी करो। मगर मलाईदार मन्त्रालयों को हाथ स मत जाने दो। यूपीए सरकार की दूसरी पारी के मन्त्रालय गठन में कांग्रेस को इन्ही दुश्वारियों से दो चार होना पड़ा। इतना ही नही 2जी स्पेकट्रम के आवंटन को लेकर भी संचार और सूचना प्रौघोगिकी मन्त्री ए राजा जो डीएमके कोटे के कैबिनेट मन्त्री पर भश्ट्राचार के गम्भीर आरोप लगे। मगर गठबंधन की राजनीति की मजबूरियां उनकी ढाल बनी हुई है। तमीलनाडू में इन दिनों `करूणानीधि के बाद कौन ` का बवाल मचा है। अझागिरी और स्टालिन के बीच जोरों से मैच चल रहा है। क्या यह एक कारण है कि इस मैच को खेलने में वो इतने मश्गूल है कि सदन के बाअंसर झेलने की उनमें हिम्मत नही। लाख टके का सवाल यह है मन्त्री जी सदन से कन्नी क्यों काट रहे है। भाशा की दिक्कत है। मन्त्रालय की एबीसीडी के बारे नही मालूम। सच तो यह भी है कि कैबीनेट की मीटींग में तक मन्त्री जी नही पहुंचते। मगर सबने अपने होट सी रखे है। कुछ भी हो मन्त्री जी का नदारद होना नेता प्रतिपक्ष के इतना नागवार गुजरा की उन्होने दो टूक कह दिया कि मन्त्री जी गुमशुदा है और उनकी यह सदन तलाश कर रहा है। जरा सोचिए गठबंधन में सरकार चलाना कितना मुिश्कल है। मगर सरकार को सपश्ट करना चाहिए। ऐसे लोगों को क्यों मन्त्री बनाया जाता है जिन्हें मन्त्रालय तक की समझ नही है। अगर सदन में जवाब देने की हिम्मत नही तो मन्त्री बनाये रखने से फायदा क्या। अगर कांग्रेस पार्टी इस पर विचार नही करती तो कही आने वाली पीढी से सामान्य ज्ञान प्रश्न पत्र में अगर यह पूछा जाए कि ऐसे किसी एक मन्त्री का नाम बताइये जो न तो कभी सदन में हाजिर हुए और न ही उन्होनें कभी कोई कैबिनेट की बैठक में भाग लिया।




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