शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

आधी आबादी की सुरक्षा का सवाल

16 दिसंबर 2012। यह देश की इस तारीख को कभी नही भूल सकता। भारत के इतिहास में यह तारीख किसी काले दिन से कम नही। क्योंकि इस दिन रात को निर्भया के साथ चलती बस में बर्बर बलात्कार किया गया। इस मामले ने देश की जनता को झकझोर तक रख दिया। इसके बाद जनता का जो रौद्र रूप सड़कों पर दिखा उसने संसद को तक हिला कर रखा दिया। देश भर में आधी आबादी की सुरक्षा को लेकर बहस छिड़ गई।
पुलिस से लेकर कानून तक में बदलाव की बात होने लगी। इन सबके बीच दिल्ली एक बार फिर सुर्खियों में थी। क्योंकि यह बर्बर कांड देश की राजधानी दिल्ली में हुआ था। पूरे देश से निर्भया को मिले समर्थन ने हुक्मरानों को कानून को कठोर करने के लिए मजबूर किया। निर्भया मामले के बाद सरकार ने जस्टिस वर्मा समिति बनाई। इस समिति ने एक महिने से कम समय में सरकार को अपनी सिफारिशें सौंपी। समिति ने पुलिस सुधार ने लेकर पूरे सिस्टम में बड़े बदलाव की सिफारिश की। एंटी रेप कानून को संसद ने अपनी मंजूरी दे दी। मगर न तो पुलिसया तौर तरीकों में बदलाव आया नही ही महिलाओं के खिलाफ अपराध रूके। आज सबसे अहम सवाल यह है कि क्या महिलाओं देश की राजधानी में अपने आप को सुरक्षित समझती है। कोई पूछे उस परिवार से जिनकी बेटी नौकरी के लिए बाहार जाती है मगर आने में पांच मिनट देरी हो जाए तो मां सहित
पूरे परिवार की स्थिति क्या हो जाती यह हम आप नही समझ सकते। जो सुरक्षा का भाव आधी आबाधी में होन चाहिए वह आज भी नदारत है। जिस देश में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है वहां उसके खिलाफ यह अपराधा की सामाजिक ताने बाने पर भी सवाल उठाते हैं। क्योंकि ज्यादातार मामलों में अपराध करने वाला पीड़िता का जानकार होता है। उसका रिश्तादार होता है।

सोचो न समझो लाचार है औरत
जरूरत पड़े तो दिवार है औरत
मां है बहन है पत्नि है हर जिम्मेदारी के लिए तैयार है औरत। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सियासत मे! भगवान
    पहले हर-हर महादेव था, अब है हर-हर मोदी
    आज सनातन की बुनियादे! ,राम-भक्त ने खोदी
    राम-राम को छोडो अब तो रामदेव को गाओ
    आज कृश्ण का काम नही है,बालकृश्ण को लाओ

    षिव तो हिम पर चुप बैठा है,षिव सैना ही काफी
    गणपति बाबा गण-नायक से मा!ग रहा है माफी
    बलराम नही, सुखराम चलेगा,राजनीति है भाई
    दुर्गा, लक्ष्मी गौण हो गयी ,माया, ममता माई

    अब कुबेर का क्या मतलब हैे,डाकू घर-घर छाये
    तै!तिस कोटि देवता घर के हो गये सभी पराये
    यति, सति चुप चाप है! बैठी,देख के न!गी नारी
    सडको! पर मर्यादा रोए, राजनीति बलिहारी

    अब तिहाड़मे! ब्रह्मा, विश्णु,सब पि!जरे के कैदी
    द्वार - द्वार पर राजनीति के प!डित है मुस्तैदी
    अल्लाह, ईष्वर, ईषा, मूसा,जेल की रोटी खाये!
    जैसी करनी, वैसी भरनी, क्यो! धरती मे! आये

    ग!गा, यमुना मल ढोती है,वाह रे ,भक्तो! प्यारे
    गउ, ग!गा , गायित्री के, ये जलवे देखो न्यारे
    राजनीति के चैराहो! पर भगवानो! की बोली
    बाबा जी भी खेल रहे है!, देख सियासी होली

    बलात्कार मे! बाबा अन्दर, भीड़भक्त की रोये
    ब्रह्मचर्य के सभी ल!गोटे ,अपनी गरिमा खोये
    वेद, षास्त्र की चैराहो! पर होती,देख नुमाइस
    तर्को और कुतर्को मे! भी होती है अजमाइस

    राम,नाम पर जीने वालो! अब तो कुछ षर्माओ
    भगवान को कुछ तो बख्सो,ना औकात दिखाओ
    कवि ‘आग’ कहता है, तुमने मर्यादा क्यो! धोदी
    पहले हर-हर महादेव था,अब है ,हर-हर मोदी!!
    राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
    ऋशिकेष
    मो09897399815





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  2. सडान बढ़ रही है
    नेता राश्ट्र-गीत नही गाता,!िफर भी राश्ट्र-भक्त कहलाता
    हिन्दू धर्मो का दम भरते, कितने हिन्दू पूजा करते
    मुषलमान का नियम नमाजी, अल्लाह से भी धोखेबाजी
    इसाई के झटके देखो, राजनीति के पटके देखो

    मुख मे! राम बगल मे! छूरी, सारी इच्छा करते पूरी
    राश्ट्र-प्रेम का भाव नही है,जनता का भी चाव नही है
    देष की जनता भाड़मे! जाय,इनको तो बस,कुर्सि,हाय
    ये नेता झण्डे फहरात े है!,पागल राश्ट्र- गीत गाते है!

    नेता के स!ग नारी होती, बलात्कार की बाते! थोथी
    राजनीति की हर मजबूरी, सुरा - सुन्दरी करती पूरी
    छुट भैया भी लुफ्त उठाते, खुर्चन तो ये भी है! खाते
    जो ना भोगे वो है अन्धा, ये तो राजनीति का धन्धा

    सब पागल मजहब बनाते है!, कौमो! को भटकाते है!
    कौम भी पागल बनती है, पागल तलवारे! तनती है!
    पागल की ढो!ग,फकीरी से भगवान भी पागल होते है!
    मौला भी पागल होते है!, मुल्ले भी पागल होते है!

    बोझा भी पागल ढोते है!, पागल धर्मो मे! रोते है
    पागल बीजो! को बोत े है ,फसलो! मे! पागल होते है!
    नस्ल सडगयी,फस्ल सडगयी देष की पू!जीअसल सढ गयी
    स!गीत सढगये राग स गये,गीत सढ गये गजल सढ गयी

    असली पहले सढा पढा था,अब तो देखो नकल सढ गयी
    अब भी हाथ धरे बैठे है!, देखो कैसी अकल सढ़ गयी
    चेहरे,मोहरे,षक्ल सढ गयी,राजनीति मे दखल बढ गयी
    कवि‘आग’ की चिन्गारी मे!,द्वन्द,गन्द, दुर्गन्ध चढ़गयी!!!
    राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
    ऋशिकेष
    मो09897399815

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